Views and Counterviews 95

 जाने क्यों ये विडियो बार-बार मेरे यूट्यूब पर आ रहे हैं? कह रहे हों जैसे, सुनो हमें? जाने क्यों लगा, की ये तो रौचक हैं      प्रशांत किशोर  V...

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Tuesday, April 29, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 79

Conflict of Interest

राजनीतिक पार्टियाँ और बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ कैसे समाज को Conflict of Interest के जाले में घुसा कर अपना मोहरा बना रही है? जिन जालों की देन हैं, रिश्तों के ताने-बाने, स्वास्थ्य और बिमारियाँ, पैदाइश, ज़िंदगी और मौत तक?    

जानने की कोशिश करते हैं, आसपास के ही समाज से 

किसी ने आपको कुछ बोला की आपको ये करना है, या ये किसी को दिखाना है या दूर से ही ऐसे समझाना है। या शायद, आपके अपने दिमाग में ही किसी के खिलाफ कोई नफरत या उल्टा-सीधा कुछ भरा? और परिणामस्वरुप आपने कुछ उल्टा-पुल्टा किया या कहा? 

या ये भी हो सकता है, की आपके दिमाग में किसी ने कुछ अच्छा भरा? और परिणामस्वरुप आपने कुछ अच्छा किया? 

बुरे के परिणाम बूरे और भले के परिणाम भले? कर भला, हो भला, कर बुरा, हो बुरा? शायद हाँ, शायद ना? चलो मान लिया आपके आसपास दोनों ही तरह के उदहारण हों? 

कोई आपके घर से कुछ बदल रहा है? या छीन रहा है? या आपकी चलती घर की गाड़ी के पहिए पंचर कर रहा है? कौन? शायद वो, जिसने आपको ऐसा किसी की गाडी के साथ करने को बोला?

कोई आपके घर की कमाई आपसे छीन रहा है? शायद महीने में थोड़ा-बहुत जो आता था, वही? छोटे से, भरे पूरे से स्वर्ग को, उसकी शांति को, कोई छीन रहा है? कौन? शायद वो, जिन्होंने आपको किसी का घर, किसी की नौकरी छुड़वाने को बोला? जरुरत पड़ने पर, उसे वो थोड़े से पैसे ना देकर किसी और को देने को बोला? चाहे वो आपकी किसी न किसी रुप में हमेशा मदद करते आएँ हों? किसने? किसे और क्यों?

उन्होंने, जिन्होंने वो सब जाने के बाद फिर से बोला, की अब वो कहीं और पैदा हो गई है? कौन? कहाँ पैदा हो गई है? उनके यहाँ, जिन्होंने बोला, सबका खा गया? क्या वो सबका खा रहे थे? या इधर ऐसा करने को कौन बोल रहे थे? और उधर जो कर रहे थे, उन्हें ऐसा करने को कौन बोल रहे थे? राजनीतिक सुरँगों के जाले? इधर के या उधर के? या जले-भूने लोग? आसपास में ही, एक ही घर-कुनबे में, ये क्या और कैसी अदला-बदली कर रहे थे? Conflict of Interest पैदा करके? उधर भी, और इधर भी? नुक्सान दोनों को ही हुआ, किसी न किसी रुप में? हाँ। कहीं थोड़ा कम, और कहीं थोड़ा ज्यादा? मगर ऐसा, जिसकी भरपाई नहीं हो सकती? या आप भी राजनीतिक जालों के पैदा किए पुनर्जन्म में विश्वास रखते हैं? ये तो हैं रिश्तों के जोड़तोड़ या कुछ युवाओँ को दुनियाँ से ही उठा देने के किस्से-कहानी। कहीं कुछ घड़कर या दिखा बता और समझाकर? ठीक-ठाक रिसोर्सेज वाले थोड़ा जल्दी उभर जाएँगे, और कम रिसोर्सेज वाले थोड़ा ज्यादा वक़्त लेंगे?   

ऐसा ही so called बिमारियों के नाम पर जो उठाए, उनके साथ किया। इधर भी और उधर भी? कोरोना काल में so called वायरल से और उसके बाद कैंसर या लकवों से, लोगों के बेहाल? कुछ तो उठा भी दिए? क्या सच में उन्हें कैंसर या लकवा था? या जिन्हें अब तक है, वो है? उन्हें घड़ने का सच क्या है? मतलब तरीका या method या process क्या है?

आगे शायद कोई पोस्ट इन बिमारियों के एक्सपर्ट्स के लिए भी हो। क्यूँकि, ऐसे घपलों की हकीकत आप शायद ज्यादा सही बता पाएँ? और शायद नहीं भी? क्यूँकि, समाज के किस हिस्से में, कैसे और क्या घड़ा जा रहा है, वो ज्यादा सही से वहीं रहकर समझ आता है। या शायद, सर्विलांस भी काफी सहायक होता है?   

Bio Chem Terror?

Or 

Bio Chem Physio Psycho and Electric Warfare? Or perhaps much more than that? 

Creation of specific media culture around that person or place?   

Monday, April 28, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 78

 Conflict of Interest क्या है? 

Conflict टकराव या संघर्ष? जैसे खुद से ही? 

Interest आपकी अपनी रुचि या हित से?   

चलो, कुछ एक उदाहरण लेते हैं 

जब नौकरी छोड़ने के बाद, मैंने शुरु-शुरु में घर आना ज्यादा शुरु किया, तो आसपास से कुछ एक अजीबोगरीब प्रवचन आने लगे, अपने ही घर के किसी सदस्य के खिलाफ। 

"ये तो सबका खा गया।"

और आप सोचने लगें, क्या बक रहे हैं ये? है क्या इनके पास ऐसा जो इस तरह से बोल रहे हैं? मियाँ, बीबी कमाते हैं और जितना भी जैसा भी है, उसी में खुश हैं। ये ऐसा बोलने वालों को क्या दिक्कत है? इनके पास तो उनसे कहीं ज्यादा है। धीरे-धीरे आपको समझ आएगा की उनके अपने conflict of interest हैं, जो उनसे ऐसा कहलवा रहे हैं। और वो भी राजनीती के पैदा किए हुए। लड़के से थोड़ा ज्यादा पढ़ी-लिखी बहु, हज़म नहीं हो रही थी उन्हें। वो खुद अपने लड़के के लिए उसे चाह रहे थे। अजीब? इतनी छोटी-सी बात? या इससे आगे भी कहीं कुछ?  

मैंने जब नौकरी छोड़ी, तो यूनिवर्सिटी घर नहीं छोड़ा। क्यों? क्यूँकि, मेरे हिसाब से मैंने नौकरी छोड़ी ही नहीं, बल्की, ऐसा माहौल तैयार किया गया की मजबूरी में मुझे छोड़नी पड़ी। इमेल्स में वो सब लिखा जा रहा था। उस पर इतने सालों बाद वापस गाँव आने की सोचना भी, जैसे, ईधर कुआँ और उधर झेरे जैसा था। हालाँकि, तब तक उन समस्याओँ के बारे में तो कहीं कोई खबर तक ही नहीं थी, जो आने के बाद झेली। मेरे लिए तो, लाइट, पानी, अपनी खुद की रहने की जगह या अपने हिसाब से पढ़ने-लिखने की जगह ना होना, शोर की समस्या जैसी छोटी-मोटी समस्याएँ ही महाभारत-सी लग रही थी। फिर यहाँ पे एक ही कमरा था मेरा। और, अब तो बैडरूम में तो पढ़ने की आदत ही नहीं रही। और उसपे आपको पूरा वक़्त राइटिंग के लिए चाहिए, तो एक नहीं, दो तीन, छोटे-मोटे कॉर्नर तो चाहिएँ, इधर-उधर जगह बदलने के लिए, थोड़ा बहुत घूमने के लिए। क्यूंकि, इतने सालों अपनी ही तरह के वातावरण और जगह पर रहने के बाद, ऐसे चक-चक, पक-पक माहौल में रहना, मतलब, आफ़त। कहाँ मालूम था, की जो समस्याएँ यहाँ आकर झेलनी पड़ेगी, उसका तो अभी अंदाजा ही नहीं तुझे। उनके सामने ये सब तो जैसे भूल ही जाएगी। 

मेरा अपना खुद की पढ़ने लिखने के लिए छोटी-सी जगह बनाने का प्लान और भाभी का स्कूल का प्लान और किन्हीं बाहर वालों को दिक्कत? उन्हीं बाहर वालों ने conflict of interest पैदा करना शुरु कर दिया। ये तुम्हारी जमीन खा जाएगी, दिमाग में घुसाकर। अब सोचने वालों ने सोचा ही नहीं, की कैसे खा जाएगी? ना शादी की हुई और ना ही बच्चे। तुम्हारी ही बच्ची को गोद लेने की बातें। मतलब, राजनीती जहाँ conflict of interest ना हो, वहाँ भी पैदा करने के जुगाड़ रखती है। ऐसा ज्यादातर तब होता है, जब आप ज्यादा व्यस्त हैं और एक दूसरे से बात कम हो पा रही है। राजनीती वहाँ बाहर वालों को घुसेड़कर, ऐसा करवाती है। और वो बाहर हर वो जगह हो सकती है, जहाँ आप ज्यादा वक़्त गुजारते हैं। वो फिर चाहे आपका आसपड़ोस हो या ऑफिस या खेतखलिहान, कोई बैठक आदि?  

इस conflict of interest के जरिए, राजनीतिक पार्टियाँ दो धारी तलवार की तरह काम करती हैं। वो दोनों तरफ मार करती हैं। और उसका दोष भी आपके ही लोगों पर रख देती हैं। इस सबके बीच, खुद जो काँड ये पार्टियाँ रचती हैं, उसपे आपका दिमाग तक नहीं जाने देती। जैसे खाना, पानी या हवा को इन्फेक्ट करने का काम। बीमारियाँ पैदा करने के तरीके। जो बीमारी ना हों, वहाँ भी बीमारियाँ डिक्लेअर करना। वो सिर्फ कोरोना नहीं है। हर बीमारी आपके राजनीतिक सिस्टम की देन हैं। क्या जुकाम, क्या छोटा-मोटा बुखार। या फिर चाहे कैंसर और लकवा ही क्यों न हो। मगर कैसे? इसको भी शायद आगे किन्हीं पोस्ट में पढ़ेंगे। ये भी काफी हद तक राजनीती के पैदा किए गए conflict of interest की मार ही हैं। ये आपका खाना या पानी कहाँ से आता है? हवा प्रदूषित करने वाले कारक या स्त्रोत क्या हैं? या फिर लाइफ स्टाइल वाली बीमारियाँ? राजनीती या कहीं के भी सिस्टम का सीधा-सीधा और छिपा हुआ दोनों तरह का हिस्सा है इनमें। 

घर आने के बाद किस किस के conflict of interest पैदा किए गए, जो थे ही नहीं? या थोड़ा-सा भी सोचा जाता, तो होने ही नहीं थे? उनमें कुछ एक आज तक भी चल रहे हैं, जैसे जमीन के विवाद। 

इसकी नौकरी और यूनिवर्सिटी का घर दोनों छुड़वाने हैं। किन्होंने ये दिमाग में डाला कुछ अपनों के? और क्यों? किसका फायदा होना था? और क्यों अहम है यहाँ। जो जिनके दिमाग में डाला गया, उन्हें नुकसान नहीं बताया गया। उन्हें ऐसा करवाने वालों के साथ आगे क्या होना है, वो भी पता था, मगर नहीं बताया गया। क्यों? क्यूँकि, हितैषी वो उनके भी नहीं। सिर्फ तब तक रुंगा बाँटेंगे उन्हें भी, जब तक उनके अपने स्वार्थ कहीं न कहीं सिद्ध हो रहे हैं। रुंगा किसलिए कहा? क्यूँकि, दिमाग या काबिलियत सबमें है। बस निर्भर करता है, की किसको कैसा माहौल या कैसे लोग मिलते हैं। और ये पार्टियाँ, आपको उतना देना ही नहीं चाहती, की आप इनसे इंडिपेंडेंट हों पाएँ। ऐसा हो गया, तो फिर इनके आगे-पीछे कौन घुमेगा? हमने सलाम और जी-हज़ूरी वाली पार्टियाँ सिर पर बिठा रखी हैं। सलाम और जी-हज़ूरी वाली पार्टियाँ सिर पर कौन बिठाता है? जिन्हें खुद की काबिलियत का अंदाजा ना हो? और ऐसा वहाँ होता है, जहाँ का शिक्षा तंत्र ही लंजू-पंजू या फेल हो। क्यूँकि, वो शिक्षा को मुश्किल बनाता है, आसान नहीं। उससे डरना या भागना सिखाता है। वो सिर्फ डिग्रियों या ग्रेड को अहमियत देता है। उनसे मिल क्या रहा है या मिलेगा क्या, वो नहीं। ये भी एक तरह का conflict of interest ही है, खासकर, शिक्षा को मात्र कमाई का साधन बनाने वालों द्वारा।                 

चलो वापस आसपास के Conflict of interest के मुद्दों पर आएँ। 

ऐसे जैसे ये तुम्हारी ज़मीन खा जाएगी, किसने दिमाग में डलवाया? उन्होंने, जो दिख या कह रहे थे? या उन्होंने, जिन्हे ये दोनों ही नहीं जानते? आज तक भी?

ज़मीन खा जाएगी? नौकरी छुडवानी है? और यूनिवर्सिटी का घर भी छुड़वाना है? भाभी की मौत के बाद, ये चेहरे खुलकर सामने आए, बड़े ही घटिया और ओछे रुप में। जो आपको सामने दिख रहे थे, ये वो थे? या जो दूर बैठे, उन्हें अपना रोबॉट बना ये सब करवा रहे थे वो?

जो दिख रहे थे, वो अड़ोस-पड़ोस या घर-कुनबा ही है। और जो करवा रहे थे? ज्यादा अहम किरदार यहाँ किसका है?   

कोई इतना सब भला किसी और से कैसे करवा सकता है? वो भी आपस में अपने ही अड़ोसी-पड़ोसी या घर कुनबे से ही? Conflict of Interest के जाले घड़ कर। जो इन जालों के पार नहीं देख पाएँगे, वो आपस में ही एक दूसरे को काट खाएँगे।   

यहाँ पे ऐसे-ऐसे किरदार आपके सामने होंगे, जिन्हें ये तक समझ नहीं होगी, की जिसकी आप बुराई कर रहे हैं या जिसके खिलाफ भर रहे हैं, वो उसी घर का एक सदस्य है। और हो सकता है, उल्टा, तुम्हारे जाहिल किरदार से ही नफरत करने लगे। ऐसा हुआ भी। जब भाभी के बारे में किसी ने थोड़ा ज्यादा ही तड़का लगाना शुरु कर दिया। वो भी उनके जाते ही। टिपिकल बेहूदा औरतोँ वाली बातें। "वो तो पैसे चुरा लेती थी। कई बार तो रसोई के डिब्बों में मिले।" चलो आपकी मान लेते हैं की वो पैसे चुरा लेती थी, मगर, तुम्हें ये कैसे पता और किसने बताया? सामने वाला ये नहीं सोचेगा क्या? थोड़ा सा भी दिमाग होगा, तो जरुर शायद? किसके पैसे चुरा लेती थी? तुम्हारे घर आती थी क्या चुराने? या अपने ही घर के पैसे, अपनी ही कमाई के कहीं यहाँ-वहाँ रख देती थी? या शायद ऐसा भी ना हो? क्यूँकि, ये सब ये तब बोल रही थी, जब भाभी इस दुनियाँ में ही नहीं थे। पहले क्यों नहीं बोला ये सब, ताकी जवाब दे पाती वो तुम्हें?

पता नहीं बकने वाली क्या बक रही थी, उस बेचारी को शायद खुद ही अंदाजा नहीं था। जब ऐसी-ऐसी बातों से आग लगती नहीं दिखी, तो भाई ने मार दी। जब वो भी पार चलती नहीं दिखी, तो माँ और बहन तक को घसीटने की कोशिश। जब कुछ भी पार नहीं चली, तो हद ही हो गई, जाने क्या बोल गई। "निकल मेरे घर से।" यूनिवर्सिटी घर की तरफ इसारा। समझ ही नहीं आया, की उस पर हँसा जाए या गुस्सा किया जाए? उसका घर? जिसकी क्वालिफिकेशन तक उस नौकरी के लायक नहीं? ऐसे बेवकूफ लोगों को ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहिए, बस सुनते रहना चाहिए और जानने की कोशिश होनी चाहिए की ये सब घड़ा कहाँ से जा रहा है? उसके लिए, यहाँ-वहाँ ऑनलाइन हिंट मिल जाते हैं। 

इस सबमें अहम क्या है? ये पार्टियाँ लोगों का इस कदर दुरुपयोग कैसे कर पा रही हैं? किन्हीं ढंग के कामों में लगाने की बजाए, खामखाँ की बकवासों में वक़्त जाया करते लोग जैसे? वो भी अपने ही घर-कुनबे या अड़ोस-पड़ोस के ख़िलाफ़? 

Conflict of Interest घड़ के? वो भी ऐसे, की आप उस घर में आ जा रहे हैं, उनके खास बने हुए हैं और उन्हीं को जड़ से ख़त्म करने पे आमदा हैं? क्या लगते हैं वो आपके? और क्यों चाह रहे हैं ऐसा आप? क्यूँकि, उन्हें इस सबमें खुद का कोई फायदा दिखा या समझा दिया गया है? 

यहाँ फायदा दिखाया गया है। कहीं-कहीं केसों में डर, असुरक्षा की भावना और भी न जाने कितने ही साइकोलॉजिकल इम्पैटस पैदा करके, घड़के, ऐसा किया जा रहा है। ऐसे कितने ही केस भरे पड़े हैं, जिनमें सामने वाला यही नहीं समझ पा रहा, की तुझे इसका फायदा कैसे होगा? यही पार्टियाँ तुम्हारा नुकसान करती हैं, वो क्यों नहीं बताती तुम्हें? ना हुई बीमारियाँ घड़कर और जवान आदमी तक खाकर। यही पार्टियाँ तुम्हारे बच्चों या बहन, भाहियों को गलत रस्ते भी ले जा रही हैं, जानबूझकर सामान्तर घड़ाईयाँ घड़ कर। क्यों नहीं देख, समझ पा रहे तुम वो सब? क्यूँकि, उन सुरँगों या चालबाजों को कभी किसी ने दिखाया या समझाया ही नहीं। और अगर मैं गाँव नहीं आती, तो शायद ये सब समझ भी नहीं आना था। दुनियाँ में ऐसे-ऐसे विषय भी हैं? और ये विषय आपस में मिलकर कैसी-कैसी खिचड़ी पकाते हैं?

मीडिया भी जैसे कोड-कोड खेल रहा हो और पढ़े-लिखे, ये सब जानने समझने वाले भी? तो ये खामखाँ की तू-तू, मैं-मैं की बजाय, क्यों न उन विषयों को ही पढ़ाया या समझाया जाए, जो इन जालों और ताने-बानों के घड़े गए कारनामों को खुलकर बता और समझा रहे हैं? वो भी ऐसे, की आम लोगों की भी समझ आए की आपका सिस्टम या राजनीतिक माहौल आपको परोस क्या रहा है? दुनियाँ भर की यूनिवर्सिटी की सैर, शायद ऐसा ही कुछ पढ़ा या समझा रहा है।                                  

ABCDs of Views and Counterviews? 77

 Conflict of Interest क्या है? और राजनीतिक पार्टियाँ इसे आपके खिलाफ कैसे प्रयोग या दुरुपयोग करती हैं?

जैसे कोई witchhunt   

गूगल से पूछें?


अरे ये क्या है?

हिंदी में translate करके देखें?  


ये गूगल सर्च इंजन का conflict of interest है? या जो चोरी-छुपे, मेरा सारा ऑनलाइन सर्च, mails, writing वैगरह सबकुछ प्रभावित कर रहे हैं, उनका conflict of interest है? गड़बड़ है ना?
  
थोड़ा और देखते हैं 

कुछ समझ आया?

चलो इसे आगे थोड़ा और जानने की कोशिश करते हैं, आसपास से ही।   

Saturday, April 26, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 76

Alternative ways of teaching and learning?

Via activities and games?

Games from school to college and university teaching and learning?

जाने कैसे, कहाँ से, ये छोटे से शहर की खूबसूरत-सी यूनिवर्सिटी का एक विडिओ अपनी तरफ बुलाता है जैसे। देखो मुझे। अरे! ये तो बड़ी ही रौचक-सी जगह है। बिलकुल मेरी पसंद जैसी-सी लग रही है? छोटा-सा शहर और ठीक-ठाक सी यूनिवर्सिटी? ऐसे से छोटे शहर या यूनिवर्सिटी में पला-बढ़ा इंसान, जाने क्यों बड़े या भीड़-भार वाले शहरों या यूनिवर्सिटी को जैसे हज़म ही नहीं कर पाता? और यहाँ तो गर्मी भी नहीं होती। Temperature sensitivity और so-called vitiligo और सिर दर्द की वजह से, ऐसी ही कोई जगह ढूँढ रही थी मैं शायद? 

अरे नहीं। यहाँ तो ठंड़ बहुत होती है, वो भी शायद Temperature sensitivity या सिर दर्द की वजह बन गई तो? वैसे भी, इतना वक़्त इतनी भयंकर गर्मी में गुजार देने वाले, क्या इतनी ठंड़ के मौसम में आसानी से उसके अनुकूल हो पाएँगे? अब सबकुछ बिलकुल सही कहाँ होता है? और वैसे भी, मौसम तो सही कपड़ों और AC तक नहीं सिमट चुका आज? वहाँ फिर कहाँ ऐसे लाइट जाती होगी या ऐसे AC मौसम के विपरीत काम करता होगा? वो हरि याणा का कोई गाँव थोड़े ही है? लाइट तो यहाँ की यूनिवर्सिटी में भी नहीं जाती। यही सब सोचते-सोचते उस यूनिवर्सिटी को पढ़ना शुरु कर दिया था। थोड़ा बहुत उस शहर के बारे में जानना भी। Life Sciences, Computer और Games (Video Games) उस यूनिवर्सिटी के खास विषय हैं। और कोर्सेज? वक़्त से ताल मिलाते हुए जैसे। नए दौर के सिर्फ साथ चलते हुए नहीं, बल्की नया दौर जैसे घड़ते हुए? Life Sciences के कोर्सेज पढ़कर तो ऐसे लगा, की हम आज भी कुछ ज्यादा ही पीछे तो नहीं हैं? विषय वही हैं। सिलेबस भी तकरीबन वही। फिर भी कुछ है जो अलग है? क्या है वो? कोर्सेज सीधा एप्लीकेशन हैं। जैसे Biomarkers, Ecological Modelling, Cognitive Neuro Science and Psycology, Infection Biology etc. और games? थोड़ा ख़तरनाक ज़ोन लग रहा है? 

विडियो गेम्स और ख़तरनाक? नहीं। लोगबाग खेल रहे हैं शायद वेबसाइट से? वेबसाइट कुछ ज्यादा ही दिखा रही है लगता है? जैसे, ऑनलाइन घपलेबाज खास कुछ दिखा और पढ़ा रहे हैं? कैसे पता चले? वैसे यहाँ का कोड तो सुरक्षित नहीं लग रहा? तुझे कोड पढ़ने भी आते हैं? और ये कैसे पता चले की जो ये वेबसाइट पर दिख रहे हैं, वो कितने सही हैं? शहर के या यूनिवर्सिटी के नाम से नहीं समझ आ जाता क्या? इन्फेक्शन बायोलॉजी? वैसे सिर्फ गर्मियों में रहने या घुमने के लिए अच्छी जगह है शायद? शहर या यूनिवर्सिटी का नाम बताने से पहले, खुद के संदेह दूर करना सही रहेगा?   

वैसे चलो शहर का थोड़ा और हिंट दे देती हूँ। ये शहर दो युद्धों में जल चुका और फिर से आज की रफ़्तार से आगे बढ़ रहा है। कोई बात हुई? ऐसे तो यूरोप के कितने ही शहर हैं? हाँ। ऐसा ही कुछ दिखा रहा है। कह रहा हो जैसे, रोहतक के ही बारे में? 2016 में जल चूका और 2020 में इंफेक्शन की चपेट में आ चुका। वो भी ऐसे, जैसे उस दौरान दुनियाँ ही बन्ध हो गई हो? कोई वर्ल्ड वॉर जैसे? हुआ था क्या ऐसा कुछ? आह। मेरे तो भेझे पे चोट लगी हुई है तो शायद सही से याद नहीं। आपको हो तो बताना? 

चलो थोड़ा और हिंट दूँ? ये अपने यहाँ के कैंट टाउन या शहरों जैसा-सा है शायद? हिसार जैसे? अरे नहीं। उससे बेहतर, मगर डिफ़ेन्स प्रधान? जैसे स्विटज़रलैंड के कुछ एक शहर? और ये कल जो वेबसाइट दिखा रही थी, उसके अनुसार इसका नाता अपने आसपास के देशों से कुछ-कुछ ऐसे है, जैसे अपने पड़ोस का कोई गाँव और उसके कुछ मेरे स्टूडेंट्स की dissertation का लिटरेचर और रेफ़रन्स। अब ये सब सिर्फ आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस दिखा रही थी या ह्यूमन टारगेटेड इंटेलिजेंस? ये जानना अहम हो सकता है? चलो थोड़ा और वक़्त लगाकर, थोड़ी सही जानकारी के बाद सैर पे चलेंगे इसकी। ऑनलाइन :)

ABCDs of Views and Counterviews? 75

Social Tales of Social Engineering? ज़मीन से भी आगे सामाजिक ताने-बाने में गुथे हुए राजनीतिक जाले?

नौकरी और पैसा?  

नौकरी हमें चाहिए, ईधर आने दो। और बचा-कुचा पैसा, हमें? लूट-कूट पीट के चलता करो? बस इतनी-सी कहानी? या सिर्फ मुझे ऐसा लगा? नौकरी को तो सुना है मैंने ही टाटा-बाय बाय कह दिया? ऐसा ही? अपना कुछ करना चाहा तो वहाँ कुछ चाचे, ताऊ, दादे, भाई, भतीजों को दिक़्क़त है शायद? एक तो गई, अब तेरे को भी जाना है, गा रहे हों जैसे? यूनिवर्सिटी का कोई ग्रुप भी लगता है, उन्हीं का साथ दे रहा है? ये पैसे रोकम-रोकाई वही सब तो है?       

और बचत को? one click लोन ने? सच में? कैसा सरकारी बैंक है, जो ऐसी सुविधा भी देता है की एक क्लीक और लोन आपके खाते में? अच्छी है ये सुविधा तो? YONO? SBI बैंक की ऍप है ये? मगर थोड़ी गड़बड़ है शायद? ये लोन सिर्फ पर्सनल देता है, वो भी मैसेज पे मैसेज भेझ कर? लोन ले लो। लोन ले लो। अरे मैडम लोन ले लो। और मैडम ने सोचा, अब इतना कह रहे हैं तो ले ही लो? SBI सरकारी बैंक है? उसी एम्प्लॉई को कुछ महीने पहले ही Home Loan देने से मना कर रहा था, वो भी कई दिन चक्कर कटवाके और मोटी सी फाइल बनवाने के बावजूद? क्रेडिट तो उसका तब भी सही था? या तब कोई गड़बड़ थी? अरे बावली बूच वही क्रेडिट बिगाड़ने के लिए तो ऐसी-ऐसी स्कीम निकालते हैं बैंक? वो भी सरकारी? बता घर किसे चाहिए? नहीं चाहिए? वो तो मारपीट के मिलता है?  देख कितना दम चाहिए उसके लिए? है तुममें? अब पढ़ने-लिखने वाले ये काम भी करेँगे? हाँ तो तू पढ़ लिख ना, और आगे बढ़। तू तो कर लेगी। ये मार-पिटाई, गाली-गलौच वाले कैसे करेँगे? वो तो जहाँ भी जाएँगे, वही अपने यही खासमखास गुण दिखाएँगे? जैसे धोखाधड़ी वालों का झूठ के बिना काम नहीं चलता। अभी ये बोला है और थोड़ी देर बाद उसका एकदम उल्टा। क्या बिगाड़ लोगे ऐसे लोगों का? है कोई सबूत? कहीं कोई रिकॉर्डिंग या डॉक्युमेंट्स?

ये यूनिवर्सिटी ने बचत पे क्या मचाया हुआ है? मैंने तो मेल बहुत पहले नहीं कर दी थी की काट लो जितना भी बनता है और बाकी पैसा दे दो? लगता है वो मेल्स किसी ने नहीं पढ़ी? 

पढ़ी ना, उसके बाद अपने भारद्वाज जी अड़े? अड़े? कहाँ? और क्यों? उसके बाद आपकी मदद भी तो की। आ जाओ जी, पैसे ले जाओ अपने। सारे तो एक बार नहीं मिल सकते। 80-20 या 60-40 कैश और पेंशन का हिसाब-किताब? ऐसे किन्हीं डॉक्युमेंट्स पे sign भी करवाए शायद? मगर पता नहीं क्यों, बार-बार कहने के बावजूद, घर का पता अब भी अपडेट नहीं किया? ऐसा क्यों? उनके अनुसार अब भी मैं 16, टाइप-3 में ही बैठी हुई हूँ? उसके बाद तो 30, टाइप-4 को भी नहीं भुगत चुकी क्या? और उसके बाद से ही गाँव में बैठी हूँ? मुझे तो यही पता है और आपको? अब इसके भी डॉक्युमेंट्स कहाँ है, की यूनिवर्सिटी मुझे निकाल चुकी? ओह माफ़ कीजियेगा, मैं खुद ही तो छोड़ आई? तो खुद छोड़कर आने पर घर का पता अपडेट नहीं होता होगा? ले बावली बूच, शिव नै भगावै सै? यूँ ना तीर्थ सा नहा जां, ज़िंदगी पार हो जागी। आह। ये तीर्थ और चौथों के युद्ध? अबे भगवान माफ़ नहीं करेँगे, ऐसे मत बोल।        

कोई खुद को शायद खुद ही तो लूटता-पीटता है? और वहाँ रहके तो कैरियर किसी 2010 की कांफ्रेंस से आगे ही नहीं बढ़ पाएगा? ज़बर्दस्ती जैसे? अब इस सबके भी डॉक्युमेंट्स कहाँ हैं? कोई रिकॉर्डिंग, कोई प्रूफ़ तक नहीं? चलो आपको कहीं की सैर पर लेकर चलेंगे, आगे किन्हीं पोस्ट्स में। विडियो गेम्स के लिए जानी जाने वाली जगह या स्टेडियम गेम्स? हमारे मौलड़ों को भी शायद पता लगे, की दुनियाँ अगर खेलती भी है तो कैरियर और पैसा दोनों कमाती है। और आप? मार-पीटाई, गाली-गलौच, और थोड़े से पर भी अपनों का ही गला काटना और हड़पम-हड़पाई?      

Transition? Bank tansition या profession? या दोनों ही या शायद कोई भी नहीं? 

SBI बैंक ब्लॉक है, अभी तक? वैसे ऑनलाइन पैसे ट्रांसफर करो तो एक्सेप्ट कर लेता है? फिर, ये कैसा ब्लॉक है? फिर तो ऑनलाइन लॉगिन भी नहीं होना चाहिए? उसके लिए फिजिकली क्यों धक्के खाना? HDFC के नाम पर, जिस फरहे पे sign हुए, वहाँ तो खाता तक नहीं। जानभूझकर नहीं खुलवाया? क्यूँकि sign ही ऐसे करवा रहे थे, जैसे जबरदस्ती। और HDFC का एजेंट तो पेंशन की राशी भी ऐसे बता रहा था, जैसे यूनिवर्सिटी नहीं, किसी परचून की दूकान पर काम किया हो? और ICICI? पता ही नहीं उसके नाम पर ये कोई NSDL CAS वाले कैसी-कैसी इमेल्स भेझ रहे हैं? या हो सकता है, मेरी ही समझ में कोई गड़बड़ रह गई?  

समाधान तो SBI, से ही निकलेगा? कब तक ब्लॉक रहेगा? या SBI ही, या भी, वो परचून की दूकान है? डॉक्युमेंट्स कहाँ हैं? मुझे तो लगता है की इस "रुकावट में खेद है", तक में ऑफिशियली भरे पड़े हैं? और आपको? 

अबे तू इससे थोड़ा आगे राजनीतिक घड़े गए सामाजिक ताने-बाने भी तो देख। वो तो और भी ख़तरनाक हैं। चलो, उसे भी बाहर की ही कुछ एक यूनिवर्सिटी के नजरिए से ही जानने-समझने की कोशिश करें? बजाय की आसपास के ही कुछ ज़मीन हड़पो वाले शिक्षा के व्यापारियों के रोज-रोज के घटिया तमाशों से?  

ABCDs of Views and Counterviews? 74

आसानी से पहचान में आने वाले जुर्म 

 ये, घर वालों को बताने पर, हमें तो पता नहीं से शुरु होते हैं? और कहाँ तक पहुँचते हैं? 

अगर आपका कोई इंसान, कई दिन घर ना आए या बात ना करे, तो मान के चलो की कहीं कोई काँड रचा जा रहा है। उसके आसपास का इकोसिस्टम उसे brainwash कर रहा है? या इसके आगे भी कुछ है?

2-कनाल की कहानी जब सिर्फ 2-कनाल की ना रहकर, पूरा किला हड़पने की तरफ बढ़ने लगे? सिर्फ किला या आदमी भी? भाभी को इन्हीं गुंडों ने खाया? शिक्षा? शिक्षा नहीं, धंधा है? आदमी तक खाने का? एक ऐसा गंदा धंधा, जो NGO या Educational Society के नाम पर, ना सिर्फ अच्छा-खासा कमाई का साधन है, बल्की, आसपास के भाइयों की धोखे से या जाल बिछा कर ज़मीन हड़पने का भी साधन है?   

ये ज़मीन हड़पने की कहानियाँ, हैं बड़ी अजीब वैसे? क्या ये इंसान भी खाती हैं? और वो भी ऐसे, की चाचे, ताऊ, दादे, सारे उसमें लगे पड़े हों? 2002 में शायद, ये आधा किला दादा ने दोनों पोतों के नाम कराया। 2005? छोटे भाई की भाभी से शादी हुई। थोड़े ड्रामे के साथ। मगर ड्रामा क्यों? सिस्टम, इकोसिस्टम? जाहिल, गँवारपठ्ठों का इलाका? बड़े भाई ने होने वाली भाभी को बेहुदा सुना कर, स्कूल से चलता कर दिया। अरे धंधे की दुकान को डुबोओगे? जब मुझे पता चला तो गुस्सा आया, और स्कूल वाली छोटी भाभी को सुना दिया। अब सारा क्या गाना, की उन्होंने मुझे क्या-क्या सुनाया? खैर! भाई की शादी हुई। और छोटे-मोटे जाहिल इलाके वाले कमेंट्री वाले कारनामे भी। जिसमें ना ऐसे लोगों ने बहु को बक्सा और ना ही बहन-बेटी को। आया गया हुआ? 

नहीं। एक वक़्त फिर आया। जिसने और भी बहुत कुछ दिखाया। जब आप समझें, अब ये इलाका इतना गँवार और जाहिल नहीं रहा? शायद हाँ और शायद ना भी? सबकुछ भला कहाँ बदलता है? मगर, यहाँ कुछ ऐसे विवाद देखे सुने, जिन्हें सोच समझकर लगे, ये क्या है? तकरीबन दो दशक बाद कुछ चीज़ें बड़े ही अजीबोगरीब ढंग से खुद को दोहराती हैं जैसे? अबकी बार, वैसा कुछ कहाँ हुआ? अरे नहीं, उससे भी थोड़ा आगे? यहाँ तो जाती भी बदली हुई है? शाबाश लड़की, कमाल ही कर दिया ये तो? अब ये मैं शाबाशी किसे दे रही हूँ? अरे भई, अगली पीढ़ी आ चुकी है। नहले पे दहला जैसे? अब? डूबी नहीं वो दुकान? अब कोई असर नहीं पड़ा, उस दुकान पर? 

अरे, अब तो भाभी ही नहीं हैं, जो वो ये सब कह पाते। उन्हें तो शिक्षा की दुकान वाले खा गए ना? कोई नहीं, नन्द है ना, वो आईना दिखाने के लिए? क्या छोटी-छोटी बातों पे बकबक करने लगी तू भी। जो भी है, ये बदलाव मस्त है। 

मगर, उन शिक्षा की दूकान वालों को तुम आईना कैसे दिखा सकते हो? वो कहाँ बदले हैं? वो तो आज भी उसी दूकान के तौर-तरीकों पर हैं। बल्की, अगली पीढ़ी वाले तो और भी मस्त? भतीजे, चाचा की ज़मीन हड़पने लगे, दो बोतलों के बदले? "हमें तो पता नहीं?" या "बुआ जी सेफ्टी के लिए ली है?" से ये कहाँ आ गए, साल भर के अंदर ही? "वो ज़मीन मेरे नाम है?" अच्छा बेटे? बताने के लिए शुक्रिया। मौत पे ज़मीन खाई, वो भी धोखे से? मगर हज़म हो पाएगी क्या वो? उसी ज़मीन के नाम पर अगला मोहरा कौन हो सकता है, इसी conflict of interest वाली राजनीती का? उसी ज़मीन के नाम पर आगे भी आदमी खाए जाएँगे क्या? शायद? मगर, अबकी बार वो नंबर या कोढ़ कौन होगा? Materialism can be so haevy compare to human life? क्यूँकि, राजनीती नाम ही conflict of interest की राजनीती का है? और ये एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी ऐसे ही चलती रहती है? राजनीती वाले दुष्परिणाम कब और कहाँ बताते हैं? अगर पता हों तब भी? वो तो दबाते हैं। जो बताने की कोशिश करे, उसे खासकर दबाते हैं? वो कब और क्या कैसे घड़ेंगे, ये निर्भर करता है की उस वक़्त फायदा किसमें होगा? फिर ज़मीन क्या, चाहे वो बिमारियाँ हों या मौतें?             

और मौत का मतलब ही, इस धंधे में ज़मीन का हड़पना है? Conflict creations? But by whom? And how?  

कई बार कहीं-कहीं डॉक्युमेंट्स में आता है ना, conflict of interest? वो यही सब है क्या? कैसे रचती हैं, इसे पार्टियाँ? लोभ, लालच देकर? या किसी भी तरह का डर दिखाकर? या भ्राँति पैदा कर? ये सब तो है ही। उसके साथ-साथ और भी कितनी ही तरह के हथकँडे अपनाकर? 

बुरे वक़्त में शायद कहीं न कहीं, थोड़ा-बहुत अच्छा भी होता है? खासकर, जब लगे, जैसे, आसपास सारा तो तुम्हें खाने पे ही लगा है? शायद ऐसे घर में लोगों के छोटे-मोटे आपसी मतभेद कम होने लगते हैं? या शायद समझ आने लगता है, कौन कहाँ तक साथ देगा और कौन नहीं?

जब किसी को ज़मीन चाहिए। किसी को नौकरी। किसी को पैसे। और किसी को तो आदमी ही खाने हों जैसे? तुम तो कर लोगे। कोई और नौकरी पकड़ लोगे। और पैसा कमा लोगे।  मगर इनसे कहाँ हो पाएगा? ये इत्ती-सी ज़मीन? इसपे भी क्या तू-तड़ाक करना। आगे के रस्ते देखो। शायद ऐसी भी आदत नहीं पालनी चाहिए, की लोगबाग ऐसा कहते वक़्त थोड़ा-सा भी ना सोचें, की कहीं तो रुको?  

हाँ कहीं तो रुको का कोई और भी पहलू है, जमीन से आगे भी? जानने की कोशिश करें अगली पोस्ट में?   

Thursday, April 24, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 73

 एक गाना सुने? 

चाँदनी ओ मेरी चाँदनी?

या शायद? 

"अरे, ये पूछना उससे की उसके पास कोई और सूट नहीं है क्या? मैं तो जब भी देखता हूँ, वो इसी सूट में होती है।

सफ़ेद पसंद है उसकी। 

हाँ तो, जब देखो तब एक ही सूट डाल के चलदे?"

या शायद?


ये फोटो सिर्फ उदाहरण देने के लिए ली गई है। 

जैसे दो औरतें? अलग-अलग उम्र, और? एक ने सूट डाला हुआ है और दूसरी ने? साड़ी? कुछ नहीं मिलता? पता नहीं कहाँ से क्या-क्या, देखती, पढ़ती या सुनती रहती हूँ मैं?  
और भी ऐसे-सा ही कुछ इधर-उधर देखते हैं या पढ़ते हैं या सुनते हैं? कहीं भी कुछ नहीं मिलता। मगर, आपको लगता है की कुछ तो गड़बड़ है या कुछ तो मिलता-जुलता है? 

इस सबको आप amplification भी कह सकते हैं और खास तरह की ट्रैनिंग भी। ऐसी-ऐसी ट्रैनिंग बहुत बार बहुत जगह आपका दिमाग लेता है, ज्यादातर आपकी जानकारी के बिना। ये ट्रैनिंग कुछ-कुछ ऐसी ही होती है, जैसे, बच्चे को बार-बार बोलकर कुछ सिखाया जाता है। या पशु-पक्षियों को ट्रैनिंग देते होता है। रोबॉटिक ट्रेनिंग या एनफोर्समेंट उससे थोड़ा आगे चलती है। वो कुछ-कुछ ऐसी होती है, जैसी आमने सामने-लड़ने वाली सेनाओं को दी जाती है।

या फिर बच्चे को? आप तो strong हैं, उठो कुछ नहीं हुआ, कितनी ही बार बच्चे को बोला होगा आपने? 
अरे टाटी नहीं, दादी। बोलो बेटा, दादी। डीडी नहीं, दीदी। बोलो फिर से, दी दी। 
आ, तुमने चींटी मार दी, वो देखो उसकी माँ आएगी अब। जल्दी उठो, तुम्हें तो कुछ लगा ही नहीं।  
You are not so fragile. 
My baby is not so weak. 

अब ये तो इंसानो की ट्रेनिंग है। 
और पशुओं की?
उनको खाना-पानी देने का वक़्त है। यहाँ या वहाँ बाँधने का वक़्त है। दूध निकालने का वक़्त है। नहलाने या साफ़-सफाई का वक़्त है। क्यों? ऐसा नहीं होगा तो क्या होगा? आपने जिस किसी फायदे के लिए रखे हैं, वो फायदा नहीं होगा? यही ना?

अब रोबॉट्स की ट्रेनिंग में क्या खास है? इंसानों से या पशु-पक्षियों से?  
उन्हें दर्द नहीं होता?
उनके सभी पार्ट्स बदले जा सकते हैं। एकदम नए, बिल्कुल नए जैसा काम करेंगे? मतलब वो 100% बदले जा सकते हैं। जैसे आपकी गाड़ी। किसी मेजर एक्सीडेंट के बाद? और उनका नंबर रजिस्ट्रेशन वगैरह फिर भी वही रहेगा। फिर ये गाड़ियों को कहीं 10, कहीं 15 या 20 साल बाद बदलने के नियम क्यों हैं? ये बाज़ारवाद है? पुरानी चलती रहेगी, तो नई कैसे आएँगी? फिर कंपनियों को इतना फायदा कैसे होगा? ज्यादातर मध्यम वर्ग तो शायद ज़िंदगी भर ना बदले?

रोबॉट्स को कैसी भी परिस्तिथियों या मौसम में काम करने की ट्रेनिंग दी जाती है। 
उन्हें सोने या आराम करने की वैसे जरुरत नहीं पड़ती, जैसे जीवों को। हालाँकि, लिमिट्स उनकी भी होती हैं। 
उनमें कोई भी खास तरह की चिप या ऐसा कोई खास पुर्जा, बिना ज्यादा साइड इफेक्ट्स की चिंता किए लगाया जा सकता है। 
उनकी यादास्त उतनी ही होती है, जितना उसको फीड किया जाता है। 

रोबोट्स के इन नियमों को जीव-जन्तुओं या इंसानों पर लागू कर दें तो? वो खास तरह की सेनाओं की ट्रेनिंग कहलाएगा? और सिविलियन्स के केस में ऐसा हो तो? मानव रोबॉटिकरण?  

यादास्त और खास तरह की फीडिंग का उसमें कितना बड़ा हिस्सा है?
बहुत बड़ा। आदमी और कंप्यूटर या मशीन और रोबॉट्स में बहुत बड़ा फर्क यही है। इसी फर्क को राजनीतिक पार्टियाँ और बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ अपने फायदे के लिए भुनाती है। उसमें सेल या अपने उत्पाद बेचने की कला या तरीके बड़े अहम हैं। उस सबमें भी आपके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी का होना और यादास्त को भुलाना या जगाना अहम है। चाहे उस यादास्त की अहमियत महज़ किसी आती-जाती सी कमेन्ट्री जैसी ही क्यों ना हो। बहुत बार जरुरी नहीं, उस यादास्त को जगाना ही अहम हो। हो सकता है, सिर्फ भुनाना हो, अपने फायदे के लिए? क्यूँकि, हो सकता है, सामने वाला उससे चिढ़ने ही लगा हो?         

यहाँ तक तो सिर्फ पैसे जैसे से, फायदे या नुक्सान की बात है। क्या हो, अगर यही या ऐसे ही और तरीके अपनाकर यही लोग, इंसानों की ज़िंदगियाँ नर्क बनाने लगें या उन्हें बिमार करने लगें या ख़त्म ही करने लग जाएँ? वो कहीं ज्यादा खतरनाक और नुक्सान वाला है। और जिसकी भरपाई करना भी मुश्किल होता है। जैसे आपकी सेहत, खोया या गया हुआ वक़्त या शायद इंसान ही? आपके आसपास ही ऐसे कितने ही केस हो सकते हैं, जहाँ ऐसा हुआ हो या हो रहा हो? कैसे जानेंगे उसे? और कैसे निपटेंगे ऐसे खतरनाक खेल खेलने वाली इन राजनीतिक पार्टियों या बड़ी-बड़ी कंपनियों से?

जानने की कोशिश करते हैं, आगे कुछ एक पोस्ट में।     

ABCDs of Views and Counterviews? 72

कभी अगर आपको थोड़ा बहुत शक हो, तो उस शक को कभी-कभी थोड़ी तवज्जो दे दो। शक का मतलब ही ये है की आपके दिमाग को कुछ गड़बड़ लग रहा है। जैसे पीछे बिमारियों और मौतों का लगा, की कुछ तो गड़बड़ है। और जवाब भी मिल गया। हालाँकि, उस जवाब को हज़म करने में ये हिला-डुला सा दिमाग, थोड़ा और हिल गया लगता है। कुछ भी जैसे?

चलो ज्यादा सीरियस की बजाय थोड़े कम सीरियस विषय पर बात करते हैं, मगर कुछ-कुछ ऐसी सी ही, की कुछ तो गड़बड़ है। बाजार की ताकतें, अपने थोड़े-से फायदे के चक्कर में आपका कितना नुकसान कर सकती हैं? वो भी ऐसे, की आपको पता भी ना चले की ऐसे थोड़े-थोड़े में कितना नुकसान हो सकता है या हो रहा हो? 

मान लो आपको कोई थर्मो फ्लास्क खरीदना है, आपको पसंद भी आ गया। मगर जब वो आपके पास आता है तो आपको लगता है की शायद तो कुछ गड़बड़ है, मगर क्या? जानने के लिए आप फिर से उसी वेबसाइट पर जाकर देखते हैं की यही ऑर्डर किया था क्या?   

दिखा तो यही रहा है मगर? 
कुछ गड़बड़ है शायद?
क्यूँकि, जब ऑर्डर दिया तो इसका ढ़क्कन अंदर से सफ़ेद था। और ये? नहीं शायद तुम्हें ही भूल लगी है? रख लो, ये भी ठीक-ठाक ही लग रहा है?

ऐसे ही जैसे?

ये क्या है? 
घर के लिए छोटे-मोटे से स्टोरेज या आर्गेनाइजेशन के आइटम्स? 
कुछ गड़बड़ है? मगर क्या?
जो खरीदे थे, उनके रंग तो अलग हैं ना? और तुमने ये वापस कब दिए? या दे दिए? रख नहीं लिए थे? प्रयोग भी हो चुके और शायद आए-गए भी? फिर ये वेबसाइट इनका ये रंग क्यों दिखा रही है? और रिफंड या रिटर्न्ड? ये?

चलो एक और ऑनलाइन परचेस देखें? 


 क्या खास है इसमें?
कुछ नहीं? आम-सा, सादा-सा भारतीय सूट?   
मगर?
इस बाज़ारू दुनियाँ में शायद कुछ भी सीधा-सादा नहीं है? 
या शायद राजनीतिक युद्धों की दुनियाँ में? 
या शायद सर्विलांस प्रयोग और दुरुपयोग की दुनियाँ में? 
ऐसा क्या?  
पता नहीं क्यों लगा, की कहीं इसके भी रंग से तो कोई दिक्कत नहीं?

साइकोलॉजी? कुछ याद दिलवाने की कोशिश? आप शायद कब के भूल चुके?
रोबॉटिक एनफोर्समेंट?
शायद हाँ और शायद ना?
जानने की कोशिश करें कैसे?
आगे पोस्ट में?

ABCDs of Views and Counterviews? 71

Grip on every person like some eagle?

जबड़े में लिया हुआ है, जैसे हर आदमी?

ऐसा है कहर, राजनीतिक पार्टियों का?

बाजार का, बड़ी-बड़ी कंपनियों का?

हर इंसान पर?

मगर, इतना संभव कैसे?       


साढ़े तीन दिन का खास सुनारियाँ की सैर ड्रामा, किसी एक पार्टी द्वारा, उसके द्वारा घड़ी गई कहानी दिखा, सुना, बता या समझा रहा था? वो सच में हकीकत थी या सिर्फ घड़ी हुई कहानी? उस पार्टी द्वारा, जिसने ये साढ़े तीन दिन का खासमखास ड्रामा रचा? अगर हकीकत थी, तो कितनी? आप हॉउस अरेस्ट हैं, इतने सालों से? 2005 से? या आप पुलिस द्वारा की गई गुंडागर्दी के फलस्वरूप किडनैप हैं, इतने सालों से? और ये सब ऐसे-ऐसे हुआ है? एक-एक घटनाकर्म किडनैपिंग से लेकर रिहा होने तक? मगर जिसे किडनैप किया गया था, उसे किस रुप में और क्या समझ आया, उस साढ़े तीन दिन के ड्रामे से?

वो सब वहीँ नहीं रुका। ये सब किसी युद्ध का हिस्सा था, जिसमें उसे बिल्कुल ख़त्म करना था? इसमें सबसे भद्धा और घटिया रोल खुद उस पार्टी का था, जिसने वो सब रचा? क्यूँकि?


या जैसे?

या?
और भी कितने ही किस्से कहानियाँ, इस पार्टी के, उस पार्टी के?
हकीकत कहाँ कितनी है, कैसे पता चले?

ये कुछ एक किताबें, जो 2018 या उसके बाद के कुछ एक सालों में खरीदी थी, यहाँ-वहाँ रिव्यु पढ़ कर। यूँ लगा, जैसे, इन किताबों का कवर पेज ही बहुत कुछ कह रहा हो। मगर, पढ़ नहीं पाई, बस खरीदी। क्यूँकि, एक के बाद एक, अजीबोगरीब फाइल्स इक्क्ठी करने का दौर शुरु हो गया था। वो फाइल्स अपने आप में किसी न किसी तरह की कहानी सुना रही थी। और शायद ये भी समझा रही थी, की राजनीतिक पार्टियाँ ये कहानियाँ घड़ती कैसे हैं?

इसके बाद एक दौर और भी शुरु हुआ, खासकर, राजद्रोह (sedition) के केस के बाद। उसमें सुप्रीम कोर्ट भी किसी और ही रुप में नजर आया। मानो कह रहा हो, कोर्ट आम आदमी के द्वार? खासकर, ऐसे माहौल में जब आपको लगे की आप केस कैसे लड़ेंगे, ऐसे माहौल में तो आप कोर्ट तक भी सही सलामत नहीं जा सकते? और कोर्ट जैसे आपके लैपटॉप की रजिस्ट्री में बैठे हों? कोर्ट ही नहीं, मीडिया और राजनीतिक पार्टियाँ भी। हर एक शब्द, हर एक तस्वीर, हर एक विडिओ जैसे कुछ कह रहा हो। सिर्फ आपके लैपटॉप पर नहीं, बल्की उनकी webites या सोशल मीडिया पर भी। और फिर जैसे कहीं से फरमान भी निकला, की अगर ऐसे माहौल में नहीं जीना तो भारत से निकल, और कोई रस्ता नहीं। मगर प्रश्न इतने सालों से वही रहा, कहाँ? कोई इस हाल में अपने लोगों को छोड़ कर ऐसे कैसे अकेला निकल सकता है? क्यूँकि,

जबड़े में लिया हुआ है, जैसे हर आदमी?

ऐसा है कहर, राजनीतिक पार्टियों का?

बाजार का, बड़ी-बड़ी कंपनियों का?

हर इंसान पर?

मगर, इतना संभव कैसे?
और सबसे बड़ी बात उन्हें आजतक खबर नहीं?

Monday, April 21, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 70

आपने अभी-अभी कोई विडियो देखा है, किसी ऑफिसियल वेबसाइट पर। उसमें कुछ काम की जानकारी है। आप सोचते हैं, ये तो सही, घर बैठे-बिठाए काम हो गया? कल कॉल करती हूँ इस नंबर पर, ऑफिसियल टाइमिंग पर। 

अगले दिन आपको लगता है, पहले थोड़ी और जानकारी लेनी चाहिए, उसके बाद ही कॉल या ईमेल करना सही होगा। और आप उस वेबसाइट को पढ़ने लगते हैं। उस वेबसाइट द्वारा दिए गए यूट्यूब विडियो को देखने लगते हैं। इसी दौरान, आपके पास कुछ एक और ईमेल आती हैं और लगता है, कुछ गड़बड़ है। उस विडियो में था की आप NSDL का अपना कुछ हिस्सा भी निकलवा सकते हैं और चाहें तो सारा भी। वेबसाइट फिर से चैक कर। आप किसी विडियो को फिरसे देखने की कोशिश में ढूँढ़ते हैं, मगर वो विडियो ही नहीं मिलता। मतलब, ऑफिसियल वेबसाइट के नाम पर घपला है? फिर तो कॉल या ईमेल का भी क्या फायदा होगा? चलो थोड़ा और रुकती हूँ। क्या पता, कुछ और ईमेल वैगरह आए?

इसके बाद फिरसे एक-दो बार उस वेबसाइट (NSDL) से संबंधित वही विडियो यूट्यूब पर ढूंढ़ने की कोशिश की, मगर मिला ही नहीं। अब? अब क्या? ऑफिस को तो जवाब दिया ही हुआ है, जो मुझे चाहिए। देखते हैं, क्या होता है? यूनिवर्सिटी है, कोई पर्चून की दूकान थोड़े ही है। 

कल एक महान ईमेल मिलती है। इधर-उधर ऐसा कुछ सुनने-पढ़ने को मिल तो रहा था, मगर?

क्या एक इंसान किसी देश का शेयर बाजार गिरा सकता है? वो भी US जैसे देश का? एक इंसान? नहीं, शायद कोई ग्रुप? और सच में बाजार ऐसे गिरता है? फिर तो किसी भी देश का बाजार, चंद लोगों या समूह के हवाले? आज छुट्टी है, तो ईमेल की हकीकत तो ऑफिशियली कल ही पता हो पाएगी। मगर, मुझे तो वो ईमेल फ्रॉड ही लग रही है।  NSDL की कितनी ऑफिसियल वेबसाइट हैं? NSDL CAS जैसा भी कुछ है क्या? जानकार, अपना ज्ञान बाँटते रहें। मेरे जैसे जिन्हें इकोनॉमिक्स का ABC नहीं आता, उनके लिए बाजार के ऐसे-ऐसे उतार-चढ़ाव समझना थोड़ा टेढ़ी खीर ही है। वैसे है बड़ा रौचक।

गड़बड़ क्या है? उस ईमेल में जो मार्च तक की स्टेटमेंट दी हुई है, वो एक खास नंबर है और मेरी जानकारी के अनुसार, किसी एक पार्टी का उस  तारीख का हिसाब-किताब। मगर उस ईमेल में हिसाब-किताब 31 मार्च तक का है, जो Finance year का आखिरी दिन होता है, भारतीय टैक्स रिटर्न्स के अनुसार? सबसे बड़ी बात, उसमें उन्हीं कंपनी के शेयर के नाम हैं, जो मैंने या कहो की मेरे नाम पर किसी और ने मेरे खाते से क्लिक किए हुए थे? मतलब? जिन्होंने ये ईमेल भेजी है, वो शेयर भी मेरे जगह उन्होंने ही क्लिक किए थे? मेरे हिसाब से तो बड़ी ही फिस्सडी-सी कंपनी हैं। भला कोई अपना सारा पैसा, ऐसी-ऐसी कंपनियों के हवाले क्यों करेगा?

एक और गड़बड़, फिर से नॉमिनेशन माँगना? मैंने तो नॉमिनी लिखे हुए हैं शुरु से ही और मैं अभी मरी नहीं हूँ। मरने के फरहे बाँटने वाले, अभी तक उसी मारने की चाल में हैं? गिरने की तो तुम्हारी कोई हद है ही नहीं, आदमखोरो? 

Sunday, April 20, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 69

क्या धोखाधड़ी? जालसाज़ी? हेराफेरी? का नाम ही मानव-रोबॉटिकरण है?

Fraud? Fraud? Fraud?

धोखाधड़ी? जालसाज़ी? हेराफेरी?  

बाजार आपकी ज़िंदगी या भविष्य तय करता है? रिश्ते भी?

कैसे रिश्ते होंगे वो? बाज़ारू? धंधा? ये नाम बुरा लगे तो कोई बढ़िया-सा नाम आप दे दें?     

अगर आप मेरा ब्लॉग रैगुलर पढ़ते हैं तो पीछे कहीं पढ़ा होगा की आईसीआईसीआई बैंक की एक सुविधा से ये सब समझने की कोशिश में एक लिंक पर क्लिक कर दिया और अकॉउंट खोल लिया। शेयर बाजार और ट्रेडिंग क्या होती है? लेकिन पहले कभी पढ़ा नहीं और कभी शेयर लिए नहीं, तो कुछ समझ नहीं आया। अकॉउंट एक-दो बार ऐसे ही खोला, और बंद कर दिया। फिर सोचा, छोटा-मोटा कोई शेयर लेने में क्या जाता है? ज्यादा से ज्यादा, जो थोड़े बहुत पैसे आप लगाओगे, वही तो जाएँगे?

मगर ये क्या?  मुझे लगा मैंने क्लिक ही नहीं किया उस शेयर के लिंक पर, और वो शेयर मैंने ले लिया? मैंने ले लिया? ऐसा मेरा अकॉउंट दिखा रहा था। मगर मुझे लग रहा था, मैंने तो क्लिक ही नहीं किया। फिर? अपने आप हो गया? अकॉउंट मैंने खोला हुआ है और उसे चला कोई और रहा है? कहीं और ही बैठकर? 

क्या धोखाधड़ी? जालसाज़ी? हेराफेरी? का नाम ही मानव रोबॉटिकरण है? वो जो आपने नहीं किया, मगर दिखाया ऐसा जा रहा है, की आपने किया है?       

जानने के लिए मैंने एक और शेयर को देखना शुरु कर दिया। मगर ये क्या? ये तो किसी शेयर पर अपने आप क्लिक होकर फिर से मैंने वो शेयर ले लिया, दिखा रहा था?

और मैंने एक बार और कोशिश की जानने की। गड़बड़ घौटाला? नहीं घौटाले?

सबसे अहम, ये सिर्फ ऑनलाइन नहीं है। आपकी ज़िंदगी के हर पहलु के साथ है। आपकी क्यों लिखा यहाँ? कहाँ मेरा अकॉउंट और कहाँ आप सब? हम तो शायद जानते भी ना हों एक दूसरे को? पता ही नहीं कौन-कौन पढता है ये ब्लॉग? आज की टेक्नोलॉजी की चालों ढालों से अंजान हर इंसान के साथ ऐसा हो रहा है।    

फिर क्या ये अहम है, की मैंने कौन-कौन से शेयर लिए? या किसी ने मेरे अकॉउंट से, मेरे खाते से ,वो शेयर लिए जो मुझे पसंद ही नहीं? कौन हैं ये लोग जिन्होंने ऐसा किया है? भारत के ही किसी कौने में ही बैठे कुछ लोग? या दुनियाँ के किसी और ही कौने से हो रहा है ये सब?    

जानते की कोशिश करते हैं आगे, कुछ ऐसे ऐसे कारनामों के बारे में।    

Thursday, April 17, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 68

 संसाधनों का प्रयोग और दुरुपयोग 

पीछे एक सीरीज चलाई थी इसपे। क्यों? क्यूँकि, गाँव आने के बाद मैंने जितना संसाधनों का दुरुपयोग होते देखा, शायद पहले कभी नहीं। 

आप कहेँगे, ऐसा कैसे? यहाँ तो लोगबाग हर चीज़ को सँभाल कर रखते हैं? लोगों के पास इतना होता ही नहीं, की दुरुपयोग कर सकें? वही तो, की लोगों के पास इतना होता ही नहीं, की वो बर्बाद कर सकें। मगर, फिर भी करते हैं? खासकर, वो सँसाधन जिसे सबसे ज्यादा सँभाल कर रखना चाहिए? जिसकी सबसे ज्यादा सुरक्षा और देखभाल होनी चाहिए? आदमी, इंसान। जो घर या समाज, जितनी उनकी सुरक्षा रखते हैं, जितना उनका ध्यान रखते हैं, वो उतने ही आगे बढ़ते हैं। जो उनकी बजाय, बाकी छोटी-मोटी चीज़ों का ख्याल रखने लगते हैं, वो उतने ही ज्यादा पिछड़ते जाते हैं? इस पर कुछ लोगों के तर्क अलग हो सकते हैं। की नहीं, हमने तो फलाना-धमकाना का बहुत ख्याल रखा, मगर परिणाम ऐसे नहीं आए? शायद? जानने की कोशिश करें की ऐसा क्यों?

भाभी की मौत ने जितना दिखाया या समझाया, शायद उससे पहले ना कभी देखा और ना ही कभी समझा, की मानव रोबॉटिकरण क्या होता है। उससे पहले कोरोना के दौरान थोड़ी-बहुत समझ आई थी। और भाभी की मौत के बाद 2-3 और मौतें हुई आसपास, कुछ-कुछ ऐसे की बस दंग ही रह जाए इंसान, की ये क्या है? पता चला, ये मानव रोबॉटीकरण है। इसे जितना समझोगे, उतना ही आज के समाज के ताने-बानों की खबर होगी। खासकर, ज्ञान-विज्ञान और टेक्नोलॉजी के दुरुपयोग की। 

उसके बाद कुछ और मौतें देखी, सुनी और समझने की कोशिश की। कुछ-कुछ ऐसे, जैसे, ये क्या हो रहा है? ये कुछ राजनेताओं की मौतें थी। संभव है क्या? ये तो बड़े लोग हैं, साधन-सम्पन लोग। फिर? और शायद जवाब था, की साधन-सम्पन हैं, तभी तो वहाँ सिर्फ बुजुर्ग हैं। जवान या बच्चे नहीं। यहाँ तो बुजुर्ग तो ज्यादातर होते ही नहीं। जवान और बच्चों को पैदा होने से पहले भी खत्म किया है, इस सिस्टम ने। सिस्टम ने? इकोसिस्टम ने? और बनाता कौन है वो सिस्टम या इकोसिस्टम? सबसे अहम, कैसे? बायो और इससे सम्बंधित क्षेत्रों वाले पहुँचों, आपके media culture या cell culture की जानकारी, बड़े ही रौचक तरीके से अहम है यहाँ।  

जब शुरु-शुरु में मुझे ये सब समझ आना शुरु हुआ, तो लगा लैब तो अब मिली है। वहाँ तो लैब थी ही नहीं। नाम मात्र अगर थी भी, तो ऐसी, जिसमें अगर कुछ आता भी तो पता ही नहीं चलता की कहाँ, कब, कौन और कैसे किस expired से बदल जाता? शिकायत शुरु की, तो हुआ ऐसे, की लो एक के बाद एक, अब फाइल ही सँभालते रहो। और फाइल भी कैसी-कैसी? जैसे और कोई काम ही ना बचा हो? और यहाँ जो कुछ देखा-समझा तो लगा, जैसे, यही तो काम है जो शायद तुम्हें चाहिए था? सर्च करनी थी या रिसर्च? लगे रहो अब। भेझा फ्राई जैसे? जैसे, कोई पत्रकार बोले, और ये geneticist लोगों को मरने से पहले पढ़ रहे थे या उन पर जैसे रिसर्च कर रहे हों की मरने से पहले होता क्या है? और भी पता नहीं, कैसी-कैसी कहानियाँ घड़के, कैसे-कैसे आईने दिखाते हैं ना मीडिया के लोग? और पता नहीं कैसे-कैसे मिर्च-मसाले के साथ? जैसे पीछे एक किसी नेता का इंटरव्यू महाकुम्भ की मौतों पर? और किस सिस्टम ने क्या आर्डर दिया? 

ABCDs of Views and Counterviews? 67

Reverse?

But what and why?

Reverse Translation?

Reverse Transcription?

Reverse Engineering?

Reverse MBA?

Reverse MA?

Reverse MCom?

Reverse MBBS?

Anything can be reversed?

Just like anything can be tagged and marked?

Markers, permanant or temperarory can also be reversed?

Or removed altogether?

But for what and why?

When we refuse to accept them?

Like some thirth (तीर्थ) or some choth (चौथ)?

Like some 3rd or 4th class, marking some vanvas or vrindavan or?

Any such kinda ugly, filthy tag or marker? 

Like some uncivilized are fighting on some naali and gaali?

Like some deceptive marking or fake experimental tags?

Abuses and bullies of how many kinds and types?

Maybe? May not be?

ABCDs of Views and Counterviews? 66

 उग्र वाद के बटोड़े या शाँति के वाहक?

उतेजना, उग्र मानसिकता या जल्दी क्रोध आना कोई गुणवत्ता नहीं है। आज के वक़्त में तो बिलकुल ही नहीं। हमारे मौलड़, ये आज तक नहीं समझ पा रहे? वो मौलड़ अनपढ़ भी हो सकते हैं, कम पढ़े लिखे भी और अच्छे खासे पढ़े लिखे भी।   

आदमी को रोबॉट बनाने में ये क्रोध बड़े काम की चीज़ है, ऐसा मैंने पढ़ा है। आप जितने ज्यादा विचलित, असंतुलित या जल्दी क्रोध करने वाले हैं, उतना ही आसानी से आपको भावनात्मक और मानसिक स्तर पर तोड़ना, मरोड़ना आसान है। सुना है, रोबॉटिक एनफोर्समेंट की ट्रेनिंग में ये स्वभाव बड़ा कारगार है। 

भाभी की मौत हुई तो एक भाई का प्रश्न था, दीदी ये क्या हो रहा है? और मेरा उत्तर था, राजे महाराजों की सेनाओं में आखिरी पँक्ति के लोगों के साथ ऐसा ही होता है। वो ऐसे-ऐसे युद्धों में, मार की सबसे आगे वाली पँक्ति में खड़े होते हैं। वो भी ज्यादातर, बिना किन्हीं सुरक्षा कवचों के। और इसीलिए सबसे पहले ख़त्म भी।    

ये हर उस इंसान पर लागू होता है, जिसे आप आमने-सामने तू-तड़ाक करते या उससे थोड़ा आगे बढ़कर मार-पिटाई के वक़्त देखते हैं। ठीक ठाक कुर्सियों पर बैठे लोग वहाँ कब दिखते हैं? वो फिर कोई भी ठीक-ठाक पैसे वाला इंसान हो, कोई नेता या अफसर। ऐसी-ऐसी जगहों पर कौन दीखता है? या तो उनको सलाम ठोकने वाले, उनसे कुछ छोटी मोटी उम्मीद रखने वाले या वो भड़का हुआ इंसान जिसे कोई और रस्ता नहीं सुझता? जब तक उस स्तर से थोड़ा ऊपर नहीं उठोगे, वो तुम्हें ऐसे ही प्रयोग दुरुपयोग करते रहेंगे। 

आज की खतरनाक मारकाट भी उससे आगे ही है। वो गुप्त रुप से अपना काम कर जाते हैं और आप सामने तू-तड़ाक में दीखते हैं? या उससे भी आगे मार-पिटाई में? आपको पता तक नहीं होता, की आपसे गुप्त रुप से ये सब कौन करवा रहा या करवा रहे होते हैं? आप रोबॉट्स की दुनियाँ में हैं। जितना ज्यादा आप दुनियाँ का रोबॉटिकरण होते देख रहे हैं, मान के चलो की उतना ही वो सब बनाने वाले नियम कायदे इंसानों पर लागू हो रहे हैं। जो कुछ प्रयोग और उनके नियम कायदे एक क्षेत्र में लागू हो रहे हैं, वही प्रयोग या नियम कायदे किसी और क्षेत्र में भी। जैसे रोबॉट्स एक तरफ घर की सफाई के लिए हैं तो दूसरी तरफ? शिक्षा के क्षेत्र में, खेत-खलिहानों में, बच्चों के खिलौनों में, ऑटो ड्राइविंग कार, ड्रोन्स, हेलीकाप्टर, स्वास्थ्य और युद्धों में भी। 

Mind Control कोई जादू नहीं है, ज्ञान-विज्ञान है। जितना टेक्नोलॉजी का उस पर कब्ज़ा बढ़ रहा है, उतना ही आगे बढ़ने के लिए उसे जानना जरुरी है। जैसे कोई कहे, आपका बच्चा आपका नहीं, फलाना-धमकाना पार्टी या कंपनी का उत्पाद है, तो क्या कहेंगे उसे आप? या क्या आएगा आपके दिमाग में? कोई कहे, आपकी चाची, ताई, दादी या ऐसा ही कोई और रिस्ता, आपकी सास या नन्द है? या शायद आपके भाई, चाचा, ताऊ, दादा या भतीजे आपके बॉयफ्रेंड या पति हैं? भड़केंगे ना आप? ऐसा ही वो आपके घर की बहन बेटियों के बारे में बोलते नजर आएँ तो? दिमाग नहीं है लोगों में? कैसे बेहुदा या मानसिक दिवालिएपन के शिकार होंगे, ऐसा कहने वाले? अगर आप ऐसे बोलने वालों पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं, तो आप स्वस्थ हैं और ठीक-ठाक हैं। लेकिन, अगर आपने भी कहीं ऐसा कहने वालों की बातों में आना शुरु कर दिया तो? आप रोबॉटिकरण एनफोर्समेंट की ट्रेनिंग गुप्त रुप से करवाने वालों के जाल में हैं। कैसे? उसके लिए एक तरफ आपको ये सोचना है की आप ऐसा कैसे सोच भी सकते हैं? या ऐसे सोचवाने वाले कारण या कारक क्या है? और क्यों हैं? और उनसे निपटने के तरीके क्या हैं?

उसके लिए थोड़ा रोबॉटिक एनफोर्समेंट होती कैसे है? या ऐसे ट्रेनिंग के अहम भाग क्या हैं? उन्हें समझना जरुरी है। जानने की कोशिश करें थोड़ा बहुत इसे? महारे मोलड़ और गोबर के बटोड़े से ही शुरु करें?  

Sunday, April 13, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 65

Tax?

पानी पे टैक्स?

खाने पे टैक्स?

रहने की जगह पर टैक्स?

कपड़ो (या चिथड़ों) पर टैक्स?

संगत पर टैक्स?     

और कहाँ-कहाँ टैक्स देते हैं आप? या ये और ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे टैक्स देते हैं? ऐसा कितना कमाते हैं? उस कमाई से बचाते कितना हैं? कितना कहाँ-कहाँ और किस-किस रुप में ख़र्च होता है? या शायद ऐसे किसी सिस्टम का हिस्सा हैं जो अपने आप भी कोई बचत करवाता है? कितने ही बेफ़िजूली क्यों ना हों, वो बचत तो कहीं नहीं जानी?    

सबसे बड़ी बात जिनपे आप टैक्स देते हैं, उसकी गुणवत्ता क्या है? कहीं खाने-पीने के नाम पर जहर पे तो टैक्स नहीं दे रहे? कपड़ों की बजाय चीथड़ों पे? रहने की ठीक-ठाक जगह की बजाय, परेशानी वाली जगह पे? ये सब या ऐसा कुछ शायद तब तक समझ नहीं आता, जब तक आप अच्छा-खासा झटका नहीं खा लेते? उसके बाद अपना ही नहीं, बल्की, आसपास का भी बहुत-कुछ समझ आने लगता है। और अगर इतने सालों बाद मैं वापस गाँव नहीं आती, तो शायद ये सब समझ भी नहीं आता, की आप कहाँ-कहाँ कितनी तरह से लूटपीट रहे हैं? ज्यादा डिटेल में जाने की बजाय, जिसका निचोड़ इतना-सा है।  

जहरीले या ख़राब खाने-पीने पर टैक्स हमें नहीं, बल्की उन्हें देना चाहिए, जो ये सब परोस रहे हैं। और उसमें कहीं की भी राजनीती का बहुत बड़ा योगदान है। नेताओं को या पुलिस वालों को या ऐसी ही किन्हीं व्यवस्था को कंट्रोल में रखने वाली एजेंसी के बन्दों को शायद उसके लाभ का कुछ हिस्सा मिलता है? यही मिली-भगत आम आदमी को हर तरह से और हर स्तर पर खा जाती है।     

इससे मिलता जुलता भी और इससे थोड़ा सा परे भी एक और दायरा है, गाँव का। या शायद ऐसी सी जगहों का? ये आपको बताता है, खासकर, जब आप उस सबको थोड़ा ज्यादा समझना शुरु कर देते हैं?        

 

अमीरी चमकती है, और गरीबी?

अमीरी उम्र बढाती है और स्वस्थ रखती है और गरीबी?

अमीरी दिमागों को भी अपने लिए काम पर रखती है और गरीबी?

अमीरी और गरीबी दोनों ही बढ़ाई-चढ़ाई भी जा सकती हैं और घटाई भी। मगर कैसे?

एक 60, 70 साल की बुढ़िया ऐसे दिखती है और चलती है जैसे 80, 90 साल की हो। 

और एक 80, 90 साल की बुजुर्ग ऐसे, जैसे, अभी 60, 70 की हो। 

बुढ़िया और बुजुर्ग? कितना फर्क है ना अमीरी और गरीबी में? या शायद थोड़ा सभ्य और असभ्य होने में? ये जुबान से ही शुरु होती है शायद? या फिर दिमाग से? या आसपास के माहौल से? कुछ लोग जुबाँ का ही खाते हैं? और कुछ? उसी से गँवा देते हैं? यहाँ चापलूसी की बात नहीं हो रही, क्यूँकि, वो तो अलग ही तरह की जुबान होती है।