कभी अगर आपको थोड़ा बहुत शक हो, तो उस शक को कभी-कभी थोड़ी तवज्जो दे दो। शक का मतलब ही ये है की आपके दिमाग को कुछ गड़बड़ लग रहा है। जैसे पीछे बिमारियों और मौतों का लगा, की कुछ तो गड़बड़ है। और जवाब भी मिल गया। हालाँकि, उस जवाब को हज़म करने में ये हिला-डुला सा दिमाग, थोड़ा और हिल गया लगता है। कुछ भी जैसे?
चलो ज्यादा सीरियस की बजाय थोड़े कम सीरियस विषय पर बात करते हैं, मगर कुछ-कुछ ऐसी सी ही, की कुछ तो गड़बड़ है। बाजार की ताकतें, अपने थोड़े-से फायदे के चक्कर में आपका कितना नुकसान कर सकती हैं? वो भी ऐसे, की आपको पता भी ना चले की ऐसे थोड़े-थोड़े में कितना नुकसान हो सकता है या हो रहा हो?
मान लो आपको कोई थर्मो फ्लास्क खरीदना है, आपको पसंद भी आ गया। मगर जब वो आपके पास आता है तो आपको लगता है की शायद तो कुछ गड़बड़ है, मगर क्या? जानने के लिए आप फिर से उसी वेबसाइट पर जाकर देखते हैं की यही ऑर्डर किया था क्या?
दिखा तो यही रहा है मगर?
कुछ गड़बड़ है शायद?
क्यूँकि, जब ऑर्डर दिया तो इसका ढ़क्कन अंदर से सफ़ेद था। और ये? नहीं शायद तुम्हें ही भूल लगी है? रख लो, ये भी ठीक-ठाक ही लग रहा है?
ऐसे ही जैसे?
ये क्या है?
घर के लिए छोटे-मोटे से स्टोरेज या आर्गेनाइजेशन के आइटम्स?
कुछ गड़बड़ है? मगर क्या?
जो खरीदे थे, उनके रंग तो अलग हैं ना? और तुमने ये वापस कब दिए? या दे दिए? रख नहीं लिए थे? प्रयोग भी हो चुके और शायद आए-गए भी? फिर ये वेबसाइट इनका ये रंग क्यों दिखा रही है? और रिफंड या रिटर्न्ड? ये?
चलो एक और ऑनलाइन परचेस देखें?
कुछ नहीं? आम-सा, सादा-सा भारतीय सूट?
मगर?
इस बाज़ारू दुनियाँ में शायद कुछ भी सीधा-सादा नहीं है?
या शायद राजनीतिक युद्धों की दुनियाँ में?
या शायद सर्विलांस प्रयोग और दुरुपयोग की दुनियाँ में?
ऐसा क्या?
पता नहीं क्यों लगा, की कहीं इसके भी रंग से तो कोई दिक्कत नहीं?
साइकोलॉजी? कुछ याद दिलवाने की कोशिश? आप शायद कब के भूल चुके?
रोबॉटिक एनफोर्समेंट?
शायद हाँ और शायद ना?
जानने की कोशिश करें कैसे?
आगे पोस्ट में?
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