Social Tales of Social Engineering? ज़मीन से भी आगे सामाजिक ताने-बाने में गुथे हुए राजनीतिक जाले?
नौकरी और पैसा?
नौकरी हमें चाहिए, ईधर आने दो। और बचा-कुचा पैसा, हमें? लूट-कूट पीट के चलता करो? बस इतनी-सी कहानी? या सिर्फ मुझे ऐसा लगा? नौकरी को तो सुना है मैंने ही टाटा-बाय बाय कह दिया? ऐसा ही? अपना कुछ करना चाहा तो वहाँ कुछ चाचे, ताऊ, दादे, भाई, भतीजों को दिक़्क़त है शायद? एक तो गई, अब तेरे को भी जाना है, गा रहे हों जैसे? यूनिवर्सिटी का कोई ग्रुप भी लगता है, उन्हीं का साथ दे रहा है? ये पैसे रोकम-रोकाई वही सब तो है?
और बचत को? one click लोन ने? सच में? कैसा सरकारी बैंक है, जो ऐसी सुविधा भी देता है की एक क्लीक और लोन आपके खाते में? अच्छी है ये सुविधा तो? YONO? SBI बैंक की ऍप है ये? मगर थोड़ी गड़बड़ है शायद? ये लोन सिर्फ पर्सनल देता है, वो भी मैसेज पे मैसेज भेझ कर? लोन ले लो। लोन ले लो। अरे मैडम लोन ले लो। और मैडम ने सोचा, अब इतना कह रहे हैं तो ले ही लो? SBI सरकारी बैंक है? उसी एम्प्लॉई को कुछ महीने पहले ही Home Loan देने से मना कर रहा था, वो भी कई दिन चक्कर कटवाके और मोटी सी फाइल बनवाने के बावजूद? क्रेडिट तो उसका तब भी सही था? या तब कोई गड़बड़ थी? अरे बावली बूच वही क्रेडिट बिगाड़ने के लिए तो ऐसी-ऐसी स्कीम निकालते हैं बैंक? वो भी सरकारी? बता घर किसे चाहिए? नहीं चाहिए? वो तो मारपीट के मिलता है? देख कितना दम चाहिए उसके लिए? है तुममें? अब पढ़ने-लिखने वाले ये काम भी करेँगे? हाँ तो तू पढ़ लिख ना, और आगे बढ़। तू तो कर लेगी। ये मार-पिटाई, गाली-गलौच वाले कैसे करेँगे? वो तो जहाँ भी जाएँगे, वही अपने यही खासमखास गुण दिखाएँगे? जैसे धोखाधड़ी वालों का झूठ के बिना काम नहीं चलता। अभी ये बोला है और थोड़ी देर बाद उसका एकदम उल्टा। क्या बिगाड़ लोगे ऐसे लोगों का? है कोई सबूत? कहीं कोई रिकॉर्डिंग या डॉक्युमेंट्स?
ये यूनिवर्सिटी ने बचत पे क्या मचाया हुआ है? मैंने तो मेल बहुत पहले नहीं कर दी थी की काट लो जितना भी बनता है और बाकी पैसा दे दो? लगता है वो मेल्स किसी ने नहीं पढ़ी?
पढ़ी ना, उसके बाद अपने भारद्वाज जी अड़े? अड़े? कहाँ? और क्यों? उसके बाद आपकी मदद भी तो की। आ जाओ जी, पैसे ले जाओ अपने। सारे तो एक बार नहीं मिल सकते। 80-20 या 60-40 कैश और पेंशन का हिसाब-किताब? ऐसे किन्हीं डॉक्युमेंट्स पे sign भी करवाए शायद? मगर पता नहीं क्यों, बार-बार कहने के बावजूद, घर का पता अब भी अपडेट नहीं किया? ऐसा क्यों? उनके अनुसार अब भी मैं 16, टाइप-3 में ही बैठी हुई हूँ? उसके बाद तो 30, टाइप-4 को भी नहीं भुगत चुकी क्या? और उसके बाद से ही गाँव में बैठी हूँ? मुझे तो यही पता है और आपको? अब इसके भी डॉक्युमेंट्स कहाँ है, की यूनिवर्सिटी मुझे निकाल चुकी? ओह माफ़ कीजियेगा, मैं खुद ही तो छोड़ आई? तो खुद छोड़कर आने पर घर का पता अपडेट नहीं होता होगा? ले बावली बूच, शिव नै भगावै सै? यूँ ना तीर्थ सा नहा जां, ज़िंदगी पार हो जागी। आह। ये तीर्थ और चौथों के युद्ध? अबे भगवान माफ़ नहीं करेँगे, ऐसे मत बोल।
कोई खुद को शायद खुद ही तो लूटता-पीटता है? और वहाँ रहके तो कैरियर किसी 2010 की कांफ्रेंस से आगे ही नहीं बढ़ पाएगा? ज़बर्दस्ती जैसे? अब इस सबके भी डॉक्युमेंट्स कहाँ हैं? कोई रिकॉर्डिंग, कोई प्रूफ़ तक नहीं? चलो आपको कहीं की सैर पर लेकर चलेंगे, आगे किन्हीं पोस्ट्स में। विडियो गेम्स के लिए जानी जाने वाली जगह या स्टेडियम गेम्स? हमारे मौलड़ों को भी शायद पता लगे, की दुनियाँ अगर खेलती भी है तो कैरियर और पैसा दोनों कमाती है। और आप? मार-पीटाई, गाली-गलौच, और थोड़े से पर भी अपनों का ही गला काटना और हड़पम-हड़पाई?
Transition? Bank tansition या profession? या दोनों ही या शायद कोई भी नहीं?
SBI बैंक ब्लॉक है, अभी तक? वैसे ऑनलाइन पैसे ट्रांसफर करो तो एक्सेप्ट कर लेता है? फिर, ये कैसा ब्लॉक है? फिर तो ऑनलाइन लॉगिन भी नहीं होना चाहिए? उसके लिए फिजिकली क्यों धक्के खाना? HDFC के नाम पर, जिस फरहे पे sign हुए, वहाँ तो खाता तक नहीं। जानभूझकर नहीं खुलवाया? क्यूँकि sign ही ऐसे करवा रहे थे, जैसे जबरदस्ती। और HDFC का एजेंट तो पेंशन की राशी भी ऐसे बता रहा था, जैसे यूनिवर्सिटी नहीं, किसी परचून की दूकान पर काम किया हो? और ICICI? पता ही नहीं उसके नाम पर ये कोई NSDL CAS वाले कैसी-कैसी इमेल्स भेझ रहे हैं? या हो सकता है, मेरी ही समझ में कोई गड़बड़ रह गई?
समाधान तो SBI, से ही निकलेगा? कब तक ब्लॉक रहेगा? या SBI ही, या भी, वो परचून की दूकान है? डॉक्युमेंट्स कहाँ हैं? मुझे तो लगता है की इस "रुकावट में खेद है", तक में ऑफिशियली भरे पड़े हैं? और आपको?
अबे तू इससे थोड़ा आगे राजनीतिक घड़े गए सामाजिक ताने-बाने भी तो देख। वो तो और भी ख़तरनाक हैं। चलो, उसे भी बाहर की ही कुछ एक यूनिवर्सिटी के नजरिए से ही जानने-समझने की कोशिश करें? बजाय की आसपास के ही कुछ ज़मीन हड़पो वाले शिक्षा के व्यापारियों के रोज-रोज के घटिया तमाशों से?
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