Views and Counterviews 95

 जाने क्यों ये विडियो बार-बार मेरे यूट्यूब पर आ रहे हैं? कह रहे हों जैसे, सुनो हमें? जाने क्यों लगा, की ये तो रौचक हैं      प्रशांत किशोर  V...

Search This Blog

Saturday, August 30, 2025

Views and Counterviews 87

Since some time special focus was on internet warfare. Internet warfare? Strange terminology? It's not about scams but mental manipulations. And what they call it? Psychological warfares? Or cognitive punishments? Punishments? Or again warfare terminology would be better? 

खैर। इससे थोड़ा अलग कहीं चलते हैं। 

Books O Books?

क्या आप हमेशा बड़े-बड़े लेखकों और नामी-जानी हस्तियों की किताबों की बात करते हो? कभी-कभार, थोड़ी कम जानी पहचानी या शायद बिलकुल ही अंजान सी किताबों की बात क्यों नहीं? 

जैसे आईश-पाईश ज़िंदगी? ऐसी कोई किताब है क्या? मगर नाम बड़ा ही मस्त है। बच्चों की सी किताब लग रही है ना? एक और एक, ग्यारा। ये कैसी सी है? सोच रहे होगे, कितना फेंकते हो? बस थोड़ा सा :)

न्यूज़ चैनल्स पर भी कहीं किताब ज्ञान मिलता है क्या? शायद थोड़ा बहुत। सोचो, उसमें वो बच्चों के सिलेबस को ऐसे पढ़ाएँ, जैसे ये खास तरह के तरीकों से खबर देने वाले? पॉडकास्ट करने वाले? सबकी अपनी-अपनी तरह की शुरुवात और अपनी ही तरह के तथ्यों के बीच एक खास तरह का संगीत। खबर और संगीत का आपस में क्या लेना देना है? खास तरह के इफेक्ट्स, लोगों को आकर्षित करने का माध्यम? और बाँधने का भी? आप किसी भी न्यूज़ चैनल को या पॉडकास्ट को क्यों देखते हैं? सिर्फ वो खबर देता है, इसलिए? आपके काम की या मिज़ाज की खबर देता है इसलिए? या आपको पता भी नहीं और उसने कहीं न कहीं, आपको बाँधने का भी इंतज़ाम किया हुआ है? कैसे? ये अहम है। 

यहाँ मैंने फिल्मों, या सीरियल्स की बात नहीं की। वो तो बनते ही पैसा कमाने के उद्देश्य हैं। इसलिए उनमें खास तरह के इफेक्ट्स और गाने वगैरह होते हैं। ख़बरों वाले चैनल्स की बात की है। जो दुनियाँ को कोई भी जानकारी देते हैं। या कहो की दुनियाँ को खास तरह से प्रभावित करते हैं। अब वो जानकारी कितनी सच या झूठ है, ये अलग विषय हो सकता है। मगर उस जानकारी को आप तक परोसने के लिए उन्होंने उसमें कितनी तरह के खास इफेक्ट्स डाले हुए हैं? खबर को सुनाने के साथ-साथ, बैकग्राउंड में कोई खास संगीत भी चलाया हुआ है। ठीक ऐसे जैसे, पैकेज्ड फ़ूड? कुरकुरे, चिप्स, मैग्गी? बच्चों को खासकर कितने पसंद होते हैं ना?

सोचो, बच्चों का सिलेबस ऐसे पैकेज्ड फ़ूड सा आने लगे तो? कुछ कहेंगे शायद, की आता तो है। मगर, उतना सुलभ उपलब्ध नहीं है, जितना ख़बरों या मनोरंजन के ये चैनल्स? वो भी मुफ़्त में। भविष्य में शिक्षा भी शायद ऐसे ही उपलब्ध होगी?         

किसी ने कहीं कहा की विद्या और शिक्षा में फर्क होता है। पहले शिक्षा तो मुफ़्त और सहज उपलभ्ध हो। विद्या के लिए, कोई और पोस्ट। 

Books वाले कोई आईश-पाईश ज़िंदगी सी या एक और एक, ग्यारा सी किताबों पे कोई रिव्यु कब ला रहे हैं? या ऐसे कुछ एक चैनल्स के लिंक्स प्लीज।   

Wednesday, August 27, 2025

Views and Counterviews 86

हम अपना या आसपास का, इस समाज का भविष्य कहाँ देखना चाहते हैं?

जाती, मजहब, धर्म के वाद-विवादों से आगे, या मारकाट के बीच? गरीबी और अमीरी की बढ़ती खाई की तरफ? या सबके लिए कम से कम, एक ढंग की ज़िंदगी जीने के लिए, आम-सी सुविधाएँ तो हों ही? पिछले कुछ सालों में जो समझ आया वो ये, की आप एक समस्या बताईये और वो आपको हजार समस्याओँ की फाइल्स थमा देंगे। आपको जिस समस्या का समाधान चाहिए था, वो तो शायद ही मिले। मगर, और कितनी ही अनदेखी, कल्पपनाओं तक में ना सोची-समझी समस्याओँ में जरुर उलझ जाओगे। तो क्या किया जाए?

ऐसा भी नहीं है की ज्यादातर लोग बुरे ही हैं। हर कोई आपका बुरा ही चाहता हो। मगर, समस्याएँ शायद कुछ ऐसे रुप में पेश आती हैं, की सबके अपने-अपने निहित स्वार्थ अड़ जाते हैं? सब चाहते हैं, की सबके लिए अच्छी शिक्षा हो। सबके पास रोटी, कपड़ा, मकान और किसी न किसी तरह का रोजगार या काम धाम हो। चारों तरफ साफ़ सफाई और प्रदूषण रहित वातावरण हो। फिर समस्या कहाँ है?

अपना फोकस समस्या पर नहीं, बल्की, उसके समाधान पर करो। आप एक समस्या का समाधान या हल देंगे, तो शायद चारों तरफ समस्या ही समस्या नहीं, बल्की, समाधान ही समाधान नजर आएँगे? तो अपना फोकस तो शिक्षा था और है और वही रहना है। हाँ। अब उसमें सुधार का थोड़ा-सा नजरिया जरुर बदल गया है। अब मैं हर चीज़ को सिस्टम, मीडिया कल्चर और उसके घटकों (ingredients) की नज़र से देखती हूँ। 

जैसे आपको कोई तकलीफ या बीमारी है तो आप खुद एक सिस्टम हैं। उसके बाद आपका आसपास जो आपको सीधे सीधे प्रभावित करता है, आपसे बड़ा एक सिस्टम है। आप उसे इकोसिस्टम भी कह सकते हैं। ऐसे ही छोटे से बड़े और बड़े इकोसिस्टम। पहले अपने सिस्टम पर फोकस करो, फिर आपका आसपास और उससे आगे उससे बड़ा आसपास। सब समस्याओं और बिमारियों की जड़ वहीँ है। और समाधान भी। मगर अगर आपको लगता है की एक हद से आगे समाधान आपके वश में नहीं है। तो माइग्रेशन उसका ईलाज है।                

एक तरफ नए युग की शिक्षा को गाते लोग, नई दुनियाँ की शिक्षा की सैर कराते लोग? AI और रोबॉटिकस का गुणगान गाते लोग? और दूसरी तरफ? आज तक रोटी, कपड़ा और मकान नहीं है, पर अटक गए हैं? ऐसा ही?

या हम भी एक ऐसे भविष्य की तरफ बढ़ रहे हैं, जहाँ शिक्षा, अच्छी शिक्षा, आज से कदम ताल मिलाती शिक्षा,  सबके लिए आसानी से और मुफ्त उपलभ्ध होगी? आपको अगर ये अध्यापक पसंद नहीं, तो दूसरा चैनल या विडियो लगा लो? शुद्ध, स्वच्छ पीने लायक पानी सिर्फ घरों में ही नहीं, बल्की, यहाँ-वहाँ नलों के जरिए हर जगह उपलभ्ध होगा? साफ़-सुथरी, हरी-भरी जगहें और खामखाँ के वाद-विवादों से परे ज़िंदगी? ऐसा भविष्य चाहते हैं क्या आप अपने आसपास का, समाज का? 

या बेतुके-से काँव-काँव से करते चैनल और नेता लोग? भविष्य की कोई खोज खबर नहीं? मगर, इतिहास को जैसे गिद्धों से, जाली-ज़ाली करते, यहाँ-वहाँ, कैसा-कैसा कीचड़ और मिर्च-मसाला लगाकर परोसता मीडिया? अब इतिहास क्यूँकि इतिहास है, तो वाद-विवाद का विषय रहेगा ही। मगर, अगर हमें भविष्य अच्छा चाहिए, तो अपना और अपने आसपास का वक़्त उसके लिए तैयार करने पर ही बनेगा। सिर्फ इतिहास को रोते या गाते रहने से नहीं। जिस किसी समाज का मीडिया जो कुछ परोसता है, वो समाज भी वैसा ही होता है? या बनता जाता है? तो अगर आपको अपना आसपास या वहाँ का समाज कुछ गड़बड़ लग रहा है तो वहाँ के मीडिया को बदल दीजिए। बहुत कुछ अपने आप बदल जाएगा। 

हमारे शिक्षा तंत्र में इस मीडिया की कमी है। हमारा समाज ज्यादातर राजनीती या मनोरंजन वाले मीडिया से जुड़ा हुआ है। मीडिया सिर्फ आपको या आपके सँस्थान को advertise करने का साधन ही नहीं है। बल्की, जो कुछ आपके पास है, उसको दुनियाँ को बाटने का भी। जब आप अपने आपको advertise भी करते हैं, तो कोशिश करते हैं, की अच्छा और सिर्फ अच्छा दिखाएँ। इसी अच्छा दिखने या दिखाने की कड़ी में, अच्छे बदलाव भी लाते हैं। नहीं तो ज्यादा वक़्त तक, वही सब दिखाकर या बताकर ज्यादा नहीं चल सकते। दुनियाँ भर की यूनिवर्सिटी का मीडिया इसका उदाहरण है। किसी भी यूनिवर्सिटी की रैंकिंग या उसके सामाजिक प्रभाव को देखिए और उसके मीडिया को? जितना समृद्ध उसका मीडिया है, उतनी ही वो यूनिवर्सिटी? ऐसा मुझे ही लगा या ये सच है? ये आप खुद जानने की कोशिश कीजिए। 

सिर्फ यूनिवर्सिटी नहीं, कॉलेज या स्कूल भी। कुछ एक देशों के कुछ स्कूल या कॉलेज और कुछ एक स्कूल सिस्टम ही जैसे अपनी गुणवत्ता की गवाही आपको मीडिया के द्वारा ही देते नजर आएँगे। अब आप तो वहाँ गए नहीं। हकीकत कैसे पता चले? कोई भी सिस्टम, जो कुछ advertise करता है, और जितना ज्यादा करता है, उस पर views और counterviews भी शायद उतने ही होते हैं। 

नोट: यहाँ जब मैं मीडिया कह रही हूँ, तो उसका सीधा-सा मतलब, उस मीडिया कल्चर से ही है, जिसकी मैं बार-बार-बात करती हूँ। ये कुछ-कुछ ऐसे है, जैसे कोई कहे, "ब्याह ना होता मेरा, बेरा ना कद होवैगा।" यहाँ-वहाँ जैसे, हर जगह उसके मुँह से ये शब्द निकलते मिल जाएँगे। मगर, एंडी, बैठा बाबाओं के बीच हो? 

Media Culture matters? 

शायद ऐसे ही, जैसे, हम चाहते हों पॉश कॉलोनी में रहना, पढ़े लिखों के बीच उठना-बैठना मगर निकलना न चाहेँ गाँवों से? ऐसे गाँवों से, जो शायद आज भी कई सदी पीछे हों? चाहिए नौकरी? और वक़्त बर्बाद कर रहे हों, खामखाँ की परीक्षा धांधलियों वाली जगहों पर? या जहाँ सीट कम हों और कतारें लम्बी? या जहाँ हों बड़े-बड़े रसूख वाले लोग और उनके बच्चे? या जहाँ चलती हो, जिसकी लाठी उसकी भैंस? आपके पास कितना फालतू वक़्त है ज़िंदगी में, ऐसे-ऐसे खामखाँ के जैसे पचड़ों में उलझे रहने के लिए? जबकी, आपके पास थोड़े आसान और सीधे से रस्ते भी हों, ये सब पाने के?        

ऐसे ही समाज का है। जो समाज जितना ज्यादा पिछड़ा है, मतलब, वहाँ ऐसे मीडिया को बढ़ाने की जरुरत है, जो शिक्षा पर ज्यादा फोकस करता हो। जिस समाज में जितने ज्यादा परीक्षाओं से सम्बंधित घपले हैं, मतलब, उस समाज को उतना ही ज्यादा, ऐसी परीक्षाओं से दूर रहने की जरुरत है। वहाँ की समस्या परीक्षा नहीं हैं। शायद सीटों का कम होना है। शिक्षा में गुणवत्ता की कमी है। या शायद वक़्त के साथ अपने आपको अपडेट ना करना है। और शायद ऐसी जगहों की समस्या भी नेता लोग या राजनीती नहीं। बल्की, ऐसी राजनीती या नेता लोगों को ज्यादा मीडिया स्पेस देना है। उनकी जगह जितना मीडिया स्पेस, शिक्षा को मिलेगा, बाकी सब समस्याएँ भी अपने आप हल होती नज़र आएँगी।                  

Views and Counterviews 85

 You wanna be known more for your work? 

But maybe, 

Different people wanna remember you 

For different reasons or interests of theirs in you?


Maybe some strengths or weaknesses?

Some claims or reality?

Some gossips or rumours?

Some altered or manipulated versions of yours?


The way you talk or walk?

The way you teach, preach or lecture?

Maybe your looks or even skin or hair? 

Or maybe even the way you dress?


Maybe some attitude or presentations?

Or maybe that calmness or unshakable attitude?

Maybe?

So many maybe there?


Like  

That lady in white dress?

Or that gentleman in black?

That haughty and that gaze?

That charm and swiftness?


The cool attitude and carefree nature?

The invisible but still visible care?

The enigma and that charisma?

The beauty or that boldness?


The presence,

Which exudes power or authority?

Even without a word,

Make you feel at comfort or ease?

Amid turmoil or chaos?


Here or there you feel flattered?

Or maybe low sometimes?

It all depends,

You are surrounded by 

What kind of people?

Friday, August 15, 2025

ABCDs of Views and Counterviews 84

Independence day?

आज़ाद दिवस? 

मगर किन या किस टाइप के गुंडों या छलकपटों का? 

आजाद देश? 

मगर,

कौन सा देश? 

किसका देश? 

और कैसा देश ?  

2018 से जब एक नए संसार के हाल, चाल और ढाल देखने शुरु किए, कोढों की दुनियाँ के रास्ते, तो पता चला की ये वो गाँव, वो मौहल्ले, वो शहर, वो देश, या वो संसार नहीं है, जिसे हम बचपन से जानते हैं। ये तो राजनीती की कुर्सियों के साँड़ों और बाजार के मारकाट वाले धन्ना सेठों (औरतों का शोषण करने वाले या बलात्कारी भगवानों?) की वो दुनियाँ है, जिन्होंने भोले-भाले लोगों को दुनियाँ भर में अपने जाल में उलझाया हुआ है। 

दूसरे देशों का तो अभी तक ज्यादा पता नहीं, मगर जब भारत के जवाहर लाल नेहरु या महात्मा गाँधी, सुभाष बोस, भगत सिंह जैसे लोगों को हमारे राजनीतिज्ञों द्वारा, यहाँ वहाँ गाते पाया तो कुछ और ही समझ आया। ऐसे ही इनके युद्धों की कहानियाँ हैं। वो चाहे भारत की 1947 की स्वतंत्रता की कहानी हो या 1962 के चीनी युद्ध की या 1971 की या ऐसे ही कोई और। इन्हें जानसमझकर ऐसे लग रहा है, जैसे हमारे पढ़े लिखे (officers), वो चाहे फिर सेनाओं के हों या सिविल के, भला भोली भाली जनता का कितना और कितनी तरह से शोषण कर सकते हैं? जानने की कोशिश करें एक आम इंसान की मौत से? मौत या हत्या? खूनी शिक्षा के धंधों की, धन्ना सेठों के शिक्षा बाजार की खुनी कहानियाँ? ऐसी-ऐसी कहानियाँ, जहाँ दिखाई कुछ दे, मगर, हकीकत कुछ और मिले। आज के युग में भी औरत को महज़ एक प्रॉपर्टी समझ, उसकी खरीद परोख्त की कहानियाँ। जहाँ राजनीतिज्ञ ही नहीं, बल्की, क्या पुलिस, क्या सेना और क्या सिविल officers (?), सब जैसे धँधे में लगे हों। 

एक ऐसा छलकपट का धँधा, जिसमें हर किरदार के रावण जैसे जाने कितने चेहरे हैं, कितने हाथ, पैर और कितने ही शरीर? जिसमें क्या बेटी, क्या बहन, क्या माँ, क्या दादी या कोई और ऐसा ही रिस्ता, किसी को भी नहीं बक्सा जाता। इस छलकपट के धँधे के ये गुंडे, अपने छलकपट के तौर-तरीकों से, अपने ही देश के नागरिकों को कहीं अमेरिकी, कहीं रसियन, कहीं ऑस्ट्रेलियन, कहीं पाकिस्तानी, कहीं बांगलादेशी, कहीं नेपाली और जाने अपनी भद्दी सी कहानियों में और कैसे-कैसे किरदार बनाए मिलेंगें। इन किरदारों को ये चोरी छुपे घड़ेंगें और गोटियों सा चोरी छुपे चलाएँगें। इन कलयुगी जुआरियों के इस धँधे में, आप कब, कहाँ और कैसे इनके checkmate का कोपभाजन बन जाएँगे, आपको पता भी नहीं चलेगा। और ये भद्दे, बेहूदे जुआरी अपने आपको officers या नेता, राजनेता कहते नजर आएँगे। ये आपका सब खाकर आपको रुंगे सा प्रसाद देंगे, अगर आपको इस धँधे का abc तक नहीं पता तो। या आपको खुद आपके अपने खिलाफ या अपनों के ही खिलाफ खड़ा कर देंगे। या अगर आपको इस धँधे की थोड़ी सी भी खबर हो गई, तो या तो आपकी बोलती बंध करने की कोशिश करेंगे, या दुनियाँ से ही चलता कर देंगे। मेरे हिसाब से तो ऐसे आज़ाद देश और दुनियाँ का हिस्सा हैं हम सब। 

आपको क्या लगता है, आप कौन से खुले देश या दुनियाँ में साँस ले रहे हैं?  

आगे किन्हीं पोस्ट्स में जानने की कोशिश करेंगे, आज के युग में गाए जाने वाले कुछ खास किरदारों को, जैसे जवाहरलाल नेहरू या महात्मा गाँधी या भगत सिंह या कुछ खास युद्धों को जैसे 1947, 1962, 1971 या ऐसे ही कोई और युद्ध?                              

हमारे समाज को, इस दुनियाँ को एक Reset की जरुरत है। एक ऐसे reset की जहाँ कोढ़-कोढ़ खेलने वाले और आम लोगों को गोटियाँ समझ यहाँ-वहाँ चलने वाले इन राजनेताओं और officers (?) के खिलाफ सख़्त कारवाही हो। मगर वो कारवाही करेगा कौन? जहाँ सुप्रीम कोर्ट तक खुद ऐसा खेल रहे हों?

 ऐसे ही जैसे, mobile reset factory या लैपटॉप या कम्प्युटर रिसेट होता है। दुनियाँ भर में राजनीती और officers (?) के रचे, इन जालों, व्युहचक्क्रों से बाहर निकलने की जरुरत है। वैसे तो सुना है, इस जुआरियों के धंधे में बहुत reset हैं, जैसे "2020 Reset", बाज़ारवाद का बहुत ही भद्दा और बेहूदा रुप। जहाँ दुनियाँ भर में लोगों की ज़िंदगियों से ऐसे खेला गया, जैसे गाजर-मूलियों को काटना। और ये बताने, कहने या लिखने वालों को देशद्रोही कह, जेलों में ठोका गया। जो अपने आप में फिर से कोढ़ था। "Kidnapped by police", 2021 में, यही राजनीतिज्ञ ड्रामा था। यहाँ साल, तारीखें, समय और उस वक़्त के किरदार या आसपास के लोग, अपने आप कोई कहानी कह रहे थे जैसे। किसी खास पार्टी की कहानी।   

System Reset, where people cannot fight code-decode to create so many types of Ravan and destroy common people lives by so many types of faces

सिस्टम मतलब? कोढ़म-कोढ़।            

Tuesday, August 12, 2025

ABCDs of Views and Counterviews 83

 Can you avoid codes and numbers (politics) of any place and would not feel the consequences? 

पढ़ा था कहीं मगर कहाँ? 

Probably yes and probably not? Or maybe? But then how much most people know about these codes and numbers (politics) of any place and their consecuences? Not much, just like me? 

So what people look at when they try to move from one place to another for whatever reasons?

Common pull and push factors?

Push और Pull? 


AI क्या कहती है? 

तो माइग्रेशन लोग खुद करते हैं या करवाया जाता है, जबरदस्ती जैसे?

दोनों ही वजह हो सकती हैं?  
और बहुत मुश्किल नहीं होता जानना की खुद कर रहे हैं या जबरदस्ती कहीं धकेला जा रहा है या धकेला गया है?  

Thursday, August 7, 2025

ABCDs of Views and Counterviews 82

  राजनीती, सिस्टम और इंसानो के किस्से कहानियाँ?

राजनीती, सिस्टम और जानवरों के किस्से कहानियाँ?

राजनीती, सिस्टम और पेड़-पौधों के किस्से कहानियाँ?

राजनीती, सिस्टम और सुक्ष्म जीवों के किस्से कहानियाँ?

दुनियाँ के इस हिस्से में और दुनियाँ के उस हिस्से में?

लगते हैं जाने क्यों, जैसे मिलते-जुलते से?

और मिलता ना हो चाहे, उनमें कहीं भी कुछ भी?

और हो भी शायद?

 थोड़ा बहुत कोई कण या कोई अंश-मिलता जुलता सा? 

जैसे 

MDU के Bottle Brush Tree 

ये फोटो इंटरनेट से ली गई है। 

और UF के?


Geomatic Sciences 
और किस्से कहानियाँ?


कुछ किस्से कहानियों के पात्र शायद आपकी उम्र से भी बड़े हों। फिर चाहे वो पात्र कोई भी जीव जंतु क्यों ना हो। मगर किस्से कहानियों को सुनकर ऐसा लगेगा, ऐसा सा कुछ तो हमारे यहाँ या आसपास भी है? है क्या? तो सुनाओ उनके किस्से कहानी?  

जैसे MDU में MSc के लिए जब पहला कदम रखा, तो यूनिवर्सिटी गेट से घुसते ही डिपार्टमेंट की तरफ जाते वक़्त, सबसे पहले इन बड़े बड़े लाल फूलों वाले पेड़ों के दर्शन होते थे। और साथ में हॉस्टल की तरफ के रस्ते पर और चारों तरफ आसपास फैले, वो कीकरों के पेड़। जो अब शायद ही कहीं नज़र आते हैं। अब उनकी जगह और बहुत तरह के पेड़ नज़र आते हैं। बहुत सारी खाली जगह और उनपे उगे यहाँ वहाँ पेड़ों की बजाय, ढेर सारा कंक्रीट जंगल (Buildings) और उनके साथ साथ चलती सी ग्रीन बेल्ट जैसे। उस पर चारों तरफ इंसानों की भीड़। इतने सारे नए नए डिपार्टमेंट्स और इतने सारे स्टूडेंट्स। वो तो होना ही था। खैर, इस पर पोस्ट आगे कहीं Views और Counterviews में, जहाँ दुनियाँ भर की यूनिवर्सिटीज की सैर होती है।