Make America great again?
Or fix it?
जाने क्यों ये विडियो बार-बार मेरे यूट्यूब पर आ रहे हैं? कह रहे हों जैसे, सुनो हमें? जाने क्यों लगा, की ये तो रौचक हैं प्रशांत किशोर V...
क्या चल रहा है?
थोड़ा सिर दर्द? थोड़ा? खास तारीखों, महीनों और सालों को कुछ खास होता है? या कहो की किया जाता है? और आपको लगता है की कहानी खत्म? नहीं? या फिर से कहीं, किसी को उठाएँगे? या शायद बच गए? बिमारियों और मौतों की कहानियाँ, कहीं और। क्यूँकि, वो सच में किसी पागलपन के दौरे की तरह हैं। खासकर, जब आप उस वक़्त को झेल रहे होते हैं और यहाँ-वहाँ जाने क्या कुछ पढ़, सुन, देख या समझ रहे होते हैं। काफी वक़्त बाद, शायद सालों बाद? राजनीती और मीडिया को कई दिनों तक, थोड़ा कम देखा और सुना? खैर।
Eurovision Music? क्या चल रहा है वहाँ? पता नहीं। मैं तो इस AI के जालों और चालों को समझने की कोशिश में हूँ, शायद? Moon walk? Or Shuffle Dance?
या Shuffle-Reshuffle?
ऐसे?
खामखाँ। कुछ भी। है ना?
व्यवहारिक दाता मंदिर: आपकी समस्याओं का समाधान केंद्र और संस्थान
खाना-पानी समाधान विभाग
स्वास्थ्य लाभ विभाग
आवास विभाग
रोजगार विभाग
साफ़-सफाई विभाग
बस इतनी-सी समस्याएँ हैं, दुनियाँ में? और हमारे पास इनके समाधान नहीं? ऐसा कैसे हो सकता है? सर्च करो, किसी भी तरह के समाधान की प्रोजेक्ट की फंडिंग के लिए, और ढेरों समाधान मिलेंगे। मतलब, विकल्प तो हैं। अब इतने सारे विक्लप हैं, तो समाधान भी होंगे? इसका मतलब, हमने और हमारे नेताओं ने सारा ध्यान समस्या पर केंद्रित किया हुआ है? समाधान पर नहीं? समाधान पर ध्यान केंद्रित करो और समाधान मिलता जाएगा। समस्या पर ध्यान दो और समस्या बढ़ती जाएगी? बस, इतनी-सी बात?
व्यवहारिक दाता मंदिर, क्या नाम है ना? आपका डाटा ही आपका दाता है। इसी दाता पर दुनियाँ भर में सबसे ज्यादा खर्च हो रहा है। क्यों? क्यूँकि, यही दाता राजनीतिक गुप्ताओं के काम आता है, आपको कंट्रोल करने के लिए। मानव रोबॉट बनाने के लिए।
और ये कोई आज के युग की बात नहीं है। आज और कल में, बस इतना-सा फर्क आ गया है, की आज ज्यादातर लोगों को पता चल रहा है, की दुनियाँ कैसे चल रही है। इंटरनेट और कनेक्टिविटी का उसमें अहम स्थान है। आस्था कभी से अचूक माध्यम रहा है, इंसान को अपने वश में करने का। जितना किसी को भी आपके दाता के बारे में पता है, उतना ही आप पर कंट्रोल बढ़ता जाता है। तो क्या हिन्दू, इस तरह के कंट्रोल में ज्यादा माहिर हैं? या ज्यादा तिकड़मबाज? ज्यादा जुगाड़ू? क्यूँकि, हिन्दुओं के उतने ही भगवान होते हैं, जितनी जनसंख्याँ? मतलब, कंट्रोल व्यक्तिगत स्तर पर करने की कोशिशें? ना की जनसंख्याँ के स्तर पर? मतलब, जितनी तरह के इंसान, उतनी ही तरह के भगवान? मतलब, उतना ही गोटियों की तरह ईधर-उधर करना आसान? जैसे shuffle, reshuffle.
या शायद भगवान तो एक ही है, ये प्रकृति? बाकी भगवानों को इंसानों ने घड़ दिया है? जरुरत और सुविधानुसार? बताओ समस्या क्या है? और उसी अनुरुप, भगवान आपके सामने प्रस्तुत होंगे? भगवान आपके सामने प्रस्तुत होंगे? सच में? होते तो हैं? कैसे?
जैसे, Prayers go up, and, blessing come down? आपका दिमाग ही वो ब्रम्हांड है, जिसमें जो कुछ आता है, या प्रोग्रामिंग होती है या की जाती है, उसी अनुसार काम होते जाते हैं? अगर ऐसा हो, तो आसपास और संगत के असर को क्यों रोते रहते हैं लोग? क्यूँकि, दिमाग में बहुत कुछ आसपास से ही जाता है। जैसे जैसा हवा, पानी, खाना, और वैसा ही स्वास्थ्य। तभी तो कहते हैं शायद, की खाना औषधि की तरह लो और स्वस्थ वातावरण में रहो, तो डॉक्टर के पास जाने की या दवाई लेने की जरुरत ही नहीं पड़ेगी।
व्यवहारिक दाता मंदिर, दुनियाँ का सबसे बड़ा मंदिर? जिसमें व्यक्तिगत स्तर पर समाधान संभव है?
कितना बड़ा काम है नौकरी ईजाद करना?
कौन कर सकता है? सिर्फ सरकार? या हर कोई? शायद हर कोई? हाँ। उसका स्तर अलग-अलग हो सकता है। जैसे, कोई भी अस्थाई-सी नौकरी तो किसी न किसी को दे ही सकता है। अगर हम गाँव से ही शुरु करें, तो घर या खेत के काम के लिए, सहायक या मजदूर तो चाहिए ही होते हैं। किसी को हमेशा, तो किसी को कभी-कभी। वो किसी न किसी को नौकरी देना ही है। मगर अस्थाई। ऐसी नौकरी देनी के लिए, आपको कोई अलग से संसाधन नहीं लगाने पड़ते। या कोई खास अलग तरह की जानकारी नहीं चाहिए होती। आपको क्या और कैसे करवाना है, आपको पता होता है। मगर, ऐसे अस्थाई काम करने वाले की नौकरी सुरक्षित नहीं होती। और उसी हिसाब से पैसे और बाकी सुविधाएँ भी।
सुरक्षित और बाकी सुविधाओं वाली नौकरियों पे बाद में आएँगे। आज कुछ ऐसी-सी ही अस्थाई सी नौकरी ईजाद करें?
साफ़-सफाई
अगर मैं अपने ही गाँव से शुरु करूँ, तो मेरे यहाँ साफ़-सफाई की बहुत समस्या है। जो शायद ज्यादातर गाँवों की होती है, खासकर हमारे जैसे देशों में। कोई हर रोज साफ़-सफाई के लिए आना तो दूर, ईधर-उधर पड़ा कूड़ा ही उठाने वाला कोई नहीं होता। खासकर, जो घर खाली पड़े होते हैं, उनके सामने। अब इतने सारे आसपास मकान खाली पड़े हों, तो मुश्किल और ज्यादा होती है। और यहाँ-वहाँ खाली पड़े प्लॉट, अलग से समस्या बनते हैं। क्या समाधान है? शायद बहुत बड़ी बात नहीं है, सफाई के लिए किसी को लगा लो? मगर बहुत बार सफाई करने वाले किसी भी कारण से, अगर लम्बे समय तक ना आ पाएँ तो? गाँवों में सरपँच और मेम्बर, शायद इसी लिए बनाए जाते हैं, की गाँव की गाँव में ऐसी छोटी-मोटी समस्याओं का समाधान कर सकें? हमारे यहाँ सरपँच ठीक-ठाक है शायद। और कूड़ा इकठ्ठा करने के लिए गाडी भी लगाई हुई है। मगर वो बड़ी गाडी है, छोटी गलियों में नहीं आ सकती। कोई बड़ी बात नहीं, दो कदम बड़ी गली की साइड जाकर कूड़ा डाल आओ। यहाँ तक तो सही है। मगर, क्या कोई सफाई कर्मी भी, हर रोज बाहर सफाई के लिए नहीं लगाए जा सकते? जिससे जिन घरों में कोई नहीं रहता, वहाँ भी कूड़े के ढेर ना लगें? शायद तो लगाए जा सकते हैं? ये तो कोई बड़ी बात नहीं? हो सकता है, किन्हीं गाँवों के केसों में सरपँच कहे की उनके पास पैसे नहीं हैं, ये सब करवाने के लिए। क्यूँकि, सरकार दूसरी पार्टी वाले सरपंचों को पैसा नहीं देती।
क्या सच में ऐसा है, की सरपंचों को इतने छोटे-छोटे से काम करवाने तक के लिए पैसा नहीं मिलता? चलो कितना पैसा कहाँ से मिलता है या कहाँ से लिया जा सकता है, इस पर कोई और पोस्ट। ऐसे-ऐसे कामों के लिए पैसा, जिनके यहाँ ये कर्मचारी सफाई के लिए जाएँगे, उन्हीं से लिया जा सकता है। क्यूँकि, शहरों की कई कॉलोनियों में ऐसा होता है। जैसे रोहतक सैक्टर-14 में एक छोटा-सा रिक्से वाला आता था, कूड़ा घर-घर से लेने। और उसे उस वक़्त, सिर्फ 25 या 50 रुपये हर एक घर से मिलते थे। ये 2009 और 2010 की बात है। ऐसे ही कई कॉलोनियों में मैंने देखा था, साफ़-सफाई वाले आते थे और महीने में घर-घर से नाम मात्र पैसे लेते थे। कितना मुश्किल है, गाँवों में ये सब करना? ऐसे कुछ लोगों को तो काम बिना पैसे सरकार से लिए भी दिया जा सकता है। सिर्फ नियत का सवाल है?
ऐसी ही और भी कितनी सारी छोटी-मोटी नौकरियाँ, गाँवों में ही ईजाद की जा सकती हैं, शहरों की तरह। कई बार तो आसपास काम करने वाले ही नहीं मिलते। तो ऐसे लोगों के नंबर, किसी एक जगह से मिल जाएँ, शायद ऐसा कोई हेल्पलाइन नंबर होना चाहिए। जहाँ से जरुरत पड़ने पर, छोटी-मोटी जानकारी या ऐसी सहायता कोई भी ले सकें। हो सकता है, ऐसा कोई सहायता नंबर हो और मेरे जैसों की जानकारी में ना हो। तो ऐसे नंबर को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाने के लिए, उसका प्रचार-प्रसार होना चाहिए।
यूनिवर्सिटी के स्तर पर, सीधा प्रॉजेक्ट या कंपनियों के सहयोग से Collaborative Research या सिर्फ उस कोर्स की अनुमति हो, जिसमें यूनिवर्सिटी के स्तर पर नौकरी के लिए ट्रैनिंग शुरु हो और यूनिवर्सिटी से निकलते ही नौकरी। कुछ-कुछ ऐसे, जैसे बस या किसी भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम के व्हीकल में, सिर्फ उतने ही आदमी चढ़ पाएँ, जितनी सीट हों। उसके बाद वो व्हीकल, किसी स्टॉप पे नहीं रुकेगा। या उसका दरवाज़ा ही नहीं खुलेगा। जैसे, ज्यादातर विकसित जगहों पर होता है। सीट ना होने के बावजूद, किसी भी व्हीकल पर जितनी ज्यादा भीड़, मतलब उतना ही ज्यादा अविकसित होने की निशानी? डिग्री देने की काबिलियत होने के बावजूद, उन डिग्री धारकों को नौकरी देने की काबिलियत नहीं होना, मतलब? अच्छे संस्थानों से सीखें, की वहाँ क्या अलग है? जो सिर्फ डिग्री बाँटने वाले संस्थानो में है या नहीं है?
इस सबको सही करने के लिए क्या कदम हो सकते हैं? कुछ शायद मैं सुझा पाऊँ? क्यूँकि, मैं खुद नौकरी लेने की दौड़ में नहीं, शायद देने वालों की कैटेगरी में आने की कोशिश में हूँ।
नौकरियोँ का भी इन घरों जैसा-सा ही है। कितनी ही पोस्ट तकरीबन हर डिपार्टमेंट में खाली पड़ी रहेंगी, सालों साल, दशकों दशक। मगर?
मगर, उनकी पोस्ट कभी निकलेंगी ही नहीं। कहीं ज्यादा ही सिर फूटने लग जाएगा, तो एडहॉक या कॉन्ट्रैक्ट जैसी शोषण वाली पोस्ट घड़ दी जाएँगी। उससे बेहतर शायद यही मानव संसाधन कहीं और अच्छा कर सकते हैं। राजनीतिक पार्टियाँ ऐसा करके कई तरह के फायदे ऐंठती हैं। मगर वो फायदे, कहीं न कहीं उसी जनता को इन पार्टियों के खिलाफ भी कर जाते हैं। कोरोना के दौरान और उसके बाद उपजे, आसपास के माहौल ने इसे ज्यादा अच्छे से समझाया।
डिपार्टमेंट और आसपास, कई बार कुछ ऐसी बातें या किस्से घटित हुए की जिनको समझकर लगे, की जो लोग इतनी शिद्दत से काम करते हैं और इतना वक़्त से उस यूनिवर्सिटी या इंस्टिट्यूट से जुड़े हैं और वहाँ पोस्ट भी खाली हैं, फिर ऐसा क्या है, जो ये सरकारें उन्हें भरती नहीं? कैसी राजनीती है ये?
घर आने के बाद अपना घर ना होने की वज़ह से या ससुराल से परेशान कुछ किस्से-कहानी सुनकर फिर से ऐसे ही? ऐसा क्या है, जो ये लोग अपना खुद का अलग से घर नहीं लेते या बनाते? किन्हीं पे आश्रित ही क्यों रहते हैं? या ऐसी उम्मीद ही क्यों, ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे लोगों से? कुछ केसों में, दूसरे पर निर्भरता एक कारण हो सकता है। मगर, कुछ तो ऐसे उदाहरण की सारा ससुराल वालों को पूज देते हैं और खुद ठन-ठन गोपाल जैसे। या अजीबोगरीब सँस्कार या संस्कृति? ये क्या करेंगे, अलग से अपने मकान का? क्या अजीब प्राणी हैं? नहीं? हर जीव अपनी संतानों को इतना-सा तो सीखा ही देते हैं, की वो आत्मनिर्भर हो सकें। खुद का खाना और रहने लायक घर बना सकें।
इंसान के पास तो दिमाग थोड़ा उससे आगे सोचने-समझने के लिए, पढ़ने-लिखने या कुछ करने के लिए भी है। मगर हमारे समाज का ताना-बाना कुछ ऐसा है, की समाज का कितना बड़ा हिस्सा ऐसी-ऐसी, आम-सी जरुरतों के लिए ही संघर्ष करता नज़र आता है? शायद, अच्छी शिक्षा ही उसका एकमात्र ईलाज है।
पेपर टाइगर?
चलो, पेपर टाइगर को पढ़ने का भी आपके पास वक़्त तो है? और सुझाव भी? धन्यवाद, इतने अच्छे टाइटल के लिए। ये तो फिर भी थोड़ा बहुत मिलता होगा। कहीं तो कुछ ज्यादा ही फेंक दिया था, Writing Machine. वैसे धन्यवाद उनका भी।
बड़े-बड़े लोगों को पढ़कर थोड़ा बहुत तो फेंकना आ ही जाता है शायद :)
Interesting Saga, of not so interesting stories?
Real?
Unreal?
State?
Estate?
or Fraud?
कहानियाँ?
इधर-उधर की?
जाने किधर-किधर की?
कुछ दूर के?
या शायद कुछ पास के?
रिस्ते जैसे?
या?
कहानियाँ किन्हीं के घरों के,
ना मिलने की?
यूँ सालों-साल?
या दशकों शायद?
कैसे गुँथती हैं, ये राजनीतिक पार्टियाँ?
ऐसे-ऐसे से किस्से-कहानीयाँ?
और ऐसी, ऐसी-सी?
या कैसी कैसी-सी?
यूँ, ज़िंदगियों की बर्बादियां?
World of Illigal Human Experimentation?
Or much more than that?
हमारी राजनीती एक ऐसा Ecosystem कैसे develop करती है, की जिसमें MLA, MP वगैरह को, ऐसे-ऐसे प्लॉट या ज़मीनें या बने-बनाए घर और फ्लैट तक मुफ़्त में या गिफ़्ट में मिलते हैं?
सच है क्या ये?
और आम आदमी? वो बेचारा पता नहीं, ज़िंदगी भर कहाँ उलझा रहता है?
आपको मालूम है क्या, कुछ ऐसे नेताओं या राजनीती वालों के नाम जिनको ऐसे-ऐसे गिफ़्ट मिले हुए हैं? काफी सालों पहले रोहतक के ही कई ऐसे नेताओं के नाम सामने आए थे। कभी कुछ होता देखा है, उन लोगों के खिलाफ कुछ? और आम लोग अपनी ज़िंदगी भर की पूँजी दाँव पर लगा देता है? बदले में मिलता क्या है?
ये?
चलो थोड़ा नौकरी और निक्कमों को थोड़ा बहुत लायक बनाने से पहले, अपने नेताओं पर थोड़ा हँस लें? थोड़ा ज्यादा फेंक दिया? कोई ना, जहाँ-जहाँ ऐसा लगे, वहाँ-वहाँ लपेटते रहा करो। कई सारे इधर-उधर के सोशल प्रोफाइल्स हैं, जिन्हें अक्सर मैं पढ़ लेती हूँ। कोई इस पार्टी से सम्बंधित, तो कोई उस पार्टी से सम्बंधित। कुछ ऐसे लोग जिनसे मैं कभी नहीं मिली, मगर, वहाँ पे कई बार जानकारी बड़ी ही रौचक होती है।
कभी-कभी, कुछ-कुछ ऐसी भी शायद, जैसे बच्चे आपस में बात कर रहे हों
"Korean Khalse Mere
Korean Queen"
जैसे ये विडियो
ये पोस्ट खास हमारे बेरोजगार नेता या नेताओं के लिए
क्या आप वो नेता हैं, जो कहते हैं की नौकरियाँ नहीं हैं?
क्या वो आप हैं जो युवाओं को ही नहीं, बल्की, आमजन को ऐसे गुमराह करते हैं, की इसकी नौकरी जाएगी, तो उसे या उन्हें मिलेगी? क्या आपके पास, ऐसी हेराफेरियों और लोगों को आपस में ही भड़काने के सिवाय, कोई और समाधान नहीं है?
क्या आप वो नेता हैं, जिन्हें लगता है, की नई टेक्नोलॉजी या एप्लायंसेज का प्रयोग करने से नौकरियाँ कम हो जाएँगी? आपको क्यों नहीं लगता, या क्यों नहीं सोच पाते, की इससे ना सिर्फ लोगों की ज़िंदगियाँ आसान होंगी, बल्की, ज्यादा लोगों को नौकरियाँ मिलेंगी? वैसे, ये ज्यादा या कम क्या है? सबको क्यों नहीं? इसका मतलब, हमारी शिक्षा व्यवस्था में कमी है, जिसे सुधारने की जरुरत है?
कॉलेज से ही हर विद्यार्थी के लिए Learn and Earn जैसे प्रोग्राम शुरु होने चाहिएँ। और स्कूल के स्तर पर बच्चों को इतना-सा तो आना चाहिए, की वो अपनी ज़िंदगी इंडिपेंडेंट जीना सीख पाएँ। जरुरत पड़ने पर, कम से कम अपने लायक तो कमाने लायक हो पाएँ। कमाने लायक ना सही, कम से कम अपने काम तो कर पाएँ। ज्यादातर लड़कियाँ तो हमारे यहाँ सीख जाती हैं, मगर लड़के? लड़के होने के फलस्वरूप, हमारा समाज उन्हें जैसे अपाहिज बना देता है? या शायद, लड़का होने की जैसे सजा देता है या इनाम? ये काम लड़कियों के हैं, और ये काम लड़कों के हैं सीखाकर। स्कूल इसमें अहम भूमिका निभा सकते हैं, की अगर आपको भी लड़कियों की तरह भूख लगती है, और खाना खाते हैं, तो खाना बनाना सीखना जरुरी है। उसे किसी तरह के अहम से ना जोड़ें। अगर लड़कियों की तरह, आपको भी कपड़े पहनने की जरुरत होती है, या साफ़-सफाई अच्छी लगती है, तो कपड़े धोने, बर्तन साफ़ करने या आम साफ़-सफाई करनी आनी चाहिए। या ऐसे अप्लायंस को प्रयोग करना। फिर चाहे इन सब कामों के लिए, आपके यहाँ माँ, बहन, बीवी, बुआ, बेटी, भतीजी, या ये सब काम करने वाली आया, जैसी सुविधाएँ ही उपलब्ध क्यों ना हों। जरुरत पड़ने पर, ये सब कर पाना और बिना जरुरत पड़े, अपने घर के ऐसे कामों में सहायता करना, आपका गुण है, अवगुण नहीं। ऐसे-ऐसे कामों को करने वालों को, औरत या औरतों के गुलाम बताने वालों से, जितनी जल्दी दूरी बना लें, आपकी अपनी और आसपास की ज़िंदगी उतनी ही बेहतर होगी। ये सब करना विकसित होने की निशानी है, ना की गुलामी की, विकसित समाजों में। शायद गुलाम या अविकसित समाजों में नहीं?
यूनिवर्सिटी के स्तर पर, सीधा प्रॉजेक्ट या कंपनियों के सहयोग से Collaborative Research या सिर्फ उस कोर्स की अनुमति हो, जिसमें यूनिवर्सिटी के स्तर पर नौकरी के लिए ट्रैनिंग शुरु हो और यूनिवर्सिटी से निकलते ही नौकरी। कुछ-कुछ ऐसे, जैसे बस या किसी भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम के व्हीकल में, सिर्फ उतने ही आदमी चढ़ पाएँ, जितनी सीट हों। उसके बाद वो व्हीकल, किसी स्टॉप पे नहीं रुकेगा। या उसका दरवाज़ा ही नहीं खुलेगा। जैसे, ज्यादातर विकसित जगहों पर होता है। सीट ना होने के बावजूद, किसी भी व्हीकल पर जितनी ज्यादा भीड़, मतलब उतना ही ज्यादा अविकसित होने की निशानी? डिग्री देने की काबिलियत होने के बावजूद, उन डिग्री धारकों को नौकरी देने की काबिलियत नहीं होना, मतलब? अच्छे संस्थानों से सीखें, की वहाँ क्या अलग है? जो सिर्फ डिग्री बाँटने वाले संस्थानो में है या नहीं है?
इस सबको सही करने के लिए क्या कदम हो सकते हैं? कुछ शायद मैं सुझा पाऊँ? क्यूँकि, मैं खुद नौकरी लेने की दौड़ में नहीं, शायद देने वालों की कैटेगरी में आने की कोशिश में हूँ।
दुनियाँ में कहीं भी, किसी वक़्त क्या चल रहा है, वो दुनियाँ के किसी दूसरे कोने में बैठे लोगों को भी प्रभावित कर रहा है क्या? और किसी न किसी तरह उसका असर हमारे यहाँ भी हो रहा है? शायद हाँ, शायद ना? जानने की कोशिश करें, ऐसे ही, कहीं के भी Random से, कुछ लेखों से? नीचे कुछ ब्लॉग्स से कुछ लेख, जिन्हें मैं पढ़ती हूँ। आप भी कहीं के भी, किसी भी मीडिया को पढ़ रहे हों या देख या सुन रहे हों, मान के चलो की वो कहीं न कहीं, आपको और आपके यहाँ को भी प्रभावित कर रहा है या शायद ऐसा कुछ आपके यहाँ भी हो रहा है। क्या दुनियाँ सच में इस कदर एक दूसरे से जुड़ी है? शायद?
दुनियाँ उतनी छोटी या दकियानुशी या दिमागी गरीब नहीं है, जितना आपका दिमाग जानता है। ये खासकर उनके लिए, जो नाली, गली, लेबर बंद करने, पानी बंद करने या खाने या पानी में अपद्रव्य या जहर डालने या हवा को जानबूझकर प्रदूषित करने, लोगों को उनके रहने या काम करने के स्थानों खदेड़ने या ऐसे ही और लोगों की ज़िंदगियों में रोड़े अटकाने या लोगों को जानबूझकर मारने का काम करते हैं या करवाते हैं। दुनियाँ, इस सोच से कहीं ज्यादा बड़ी है। दुनियाँ का बहुत छोटा हिस्सा है, जो ये सब करवाता है। और उससे थोड़ा बड़ा, जो ये सब करता है।
मगर उससे कहीं ज्यादा बड़ा हिस्सा, अपनी और अपने आसपास की ज़िंदगियों को सँवारने में व्यस्त है। इन लोगों के पास इतना वक़्त ही नहीं है की ये अपना कीमती वक़्त किसी का बुरा सोचने में भी लगाएँ। फिर करने वाले तो यूँ लगता है, ज़िंदगी का कितना बड़ा हिस्सा, इसी में लगा देते हैं?
फिर दुनियाँ का एक हिस्सा वो भी है, जो अपने और अपने आसपास से थोड़ा दूर भी भला करने में लगा है। उसमें सिर्फ कुछ लोग जो अलग-थलग रहकर काम करते हैं, वही महत्वपूर्ण नहीं हैं, बल्की, काफी सारी संस्थाएँ भी ऐसा करती हैं। कहीं के भी शिक्षा के संस्थान, उसमें अहम भुमिका निभाते हैं। मगर बहुत बार, उन संस्थानों में कुछ राजनितिक ताकतें, शायद ज्यादा प्रभावी हो जाती हैं। और ऐसे वक़्त में, उन ताकतों पर निर्भर करता है की वो वहाँ के समाज को कहाँ लेकर जाएँगी?
या शायद, कहीं का भी समाज आज उतना स्थानीय (Local) नहीं है, जितना कभी होता था। और दुनियाँ भर की राजनीती, दुनियाँ के हर कोने को किसी न किसी रुप में प्रभावित करती है। और ऐसा ही कोई समाज का हिस्सा, कहीं न कहीं, किसी भी अति या दुष्प्रभाव वाली ताकत या ताकतों को रोकने का काम भी करता है? कोरोना काल में शायद ऐसा ही कुछ देखने को मिला? आप कहीं भी कुछ कर रहे हैं, तो मान के चलो की आपको देखने, सुनने और फिर उस पर अपने सुझाव या प्रतिकिर्या देने वाले दुनियाँ के हर कोने में हैं। और उस सुझाव या प्रतिकिर्या का असर ना सिर्फ उनके अपने समाज में होता है, बल्की किसी न किसी रुप में दुनियाँ भर में होता है। शायद ऐसे ही बहुत से लोगों ने कोरोना के दौरान, कितने ही लोगों को मरने से बचाने में सहायता की। और उसके बाद, कितने ही लोगों ने ये दिखाने या समझाने में, की दुनियाँ भर का सिस्टम काम कैसे कर रहा है? मैं इसी सब को समझने या लोगों को समझाने में व्यस्त हूँ। शायद, इसलिए मुझे अपने विषय से दूर जाने की जरुरत नहीं पड़ी। बल्की, वो तो इस सब में अहम कड़ी बनकर उभरा है।
दुनियाँ में कहीं भी, किसी वक़्त क्या चल रहा है, वो दुनियाँ के किसी दूसरे कोने में बैठे लोगों को भी प्रभावित कर रहा है क्या? शायद हाँ, शायद ना? जानने की कोशिश करें, ऐसे ही, कहीं के भी Random से, कुछ लेखों से?
धर्म, विज्ञान और राजनीती की खिचड़ी पक के क्या बनता है? किसी समाज का Ecosystem या Cult? कहाँ-कहाँ की राजनीती, किस-किस तरह की अफीम खिला रही है? और वो भी लोगों की जानकारी के बिना? अपने यहाँ के बारे में, आप जानने की कोशिश करो। मैं अभी जहाँ हूँ, वहाँ के बारे में जितना समझ पाई, उसे बताने की कोशिश करती हूँ।
अपने एक बेरोजगार नेता से जानने की कोशिश करें?
बेरोजगार नेता? Saurabh Bhardwaj, AAP?
जहाँ बाबाओँ के पास महल
और
शिक्षा के मंदिरों के कंगालों से हाल हों।
मान के चलो,
वहाँ आमजन के हाल बहुत सही नहीं होंगे,
जहाँ गरीब अपने दुख-दर्द मिटाने के चक्कर में,
अमीर और खाऊ-पिऊ मंदिरों को दान करते हों,
मान के चलो,
वहाँ गरीब और गरीब,
और अमीर और अमीर होते जाएँगे।
जहाँ पढ़ने-लिखने के मंदिरों से ज्यादा,
धर्म के संस्थान हों।
(संस्थान और मंदिर एक ही बात है ना?)
मान के चलो,
वहाँ की जनता अपने नेताओं की गुलामी में होगी।
क्यूँकि,
धर्म या कोई भी संस्थान,
किसी न किसी आस्था पे ही बना है या टिका है।
और वहीँ से आगे बढ़ा है।
हमारे शिक्षा के संस्थान,
जब इन मंदिरों, मस्जिदों, जैसे-से,
महल दिखने लग जाएँगे।
मान के चलो,
उस दिन हमारे यहाँ के पढ़े-लिखे,
अमेरिका की तरफ नहीं भाग रहे होंगे।
कांग्रेस या आप जैसी पार्टियों के डूबने की एक वजह, शायद ये भी है?
पता नहीं।
मगर इस दौरान कुछ एक फोटो, लेख या विडियो बड़े ही रौचक लगे।
जैसे? जानते हैं आगे पोस्ट में।
VYLibraries
VY Stories
VY Studios
VY Projects
VY Health Parks, Herbal Parks, Kitchen Garden
VY Recyclers, Rejuvenators and Growth and Revival Centres
Facilitate, Accelerate, Catalyst, Assist, Promote, Aid, Foster, Stimulate
Nurture, Develop, Encourage, Sustainable, Design, Care, Ease, Growth
क्या है ये सब? Reflection? या शायद उससे आगे बहुत कुछ?
भाभी गए तो उनके साथ उनका स्कूल का सपना भी? क्यूँकि, उनके जाने के बाद, कुछ उनके ऐसे खास आए की लगा, ये उनके अपने हैं या दुश्मन? एक तरफ आप उनके आखिरी सपनों को हवा दे रहे थे, शायद याद भर? और ये अपने, जैसे उन्हें भी उनके साथ ही दफनाना चाह रहे थे? इन अपनों का हर कदम ऐसा क्यों लग रहा था मुझे? इन घरों में उनके जाने के बाद जो कहानियाँ चली, वो और भी हैरान करने वाली जैसी? इनमें से कोई भी नहीं चाहता था या है, की अब मैं किसी स्कूल की बात करूँ। ऐसा क्यों?
और बच्चे के स्कूल के प्रोग्राम?
खैर। वो मेरा सपना नहीं था। मुझे इतनी बड़ी बहन जी नहीं बनना था। "अब ये बड़ी बहन जी बनेगी"। और भी पता ही नहीं, क्या-क्या। अपना सपना, लिखाई पढ़ाई और रिसर्च ही था और है। और वो जारी है। मगर उस वक़्त वो थोड़ा-सा, स्कूल बनाने के बारे में जो कुछ सुना, पढ़ा या रिसर्च किया, उसी ने शायद, दुनियाँ भर की यूनिवर्सिटी की ऑनलाइन सैर का भी प्रोग्राम बनवाया। इसी दौरान, इधर-उधर से कई तरह की सलहाएँ भी आई। जैसे ये कर सकते हो, वो कर सकते हो। या यही क्यों? कुछ और क्यों नहीं? हर एक का धन्यवाद। खासकर उनका, जहाँ मुझे ऐसा लगा, शायद कहीं खर्चे-पानी या कम से कम इतना-सा तो यहाँ भी कमा सकते हो या सीख सकते हो, वाली सलाहें या सुझाव मिले। खासकर, मेरे हाल जब सच में बहुत ही बेहाल थे। बहुत ज्यादा सही अब भी नहीं हैं। मगर, शायद थोड़े और वक़्त बाद, ज्यादा नहीं तो थोड़ा बहुत तो सही हो ही जाएँगे। कुछ भी झेलना या किसी भी परिस्तिथि के अनुसार खुद को ढाल पाना, शायद तब ज्यादा मुश्किल होता है, जब आप ऐसा कुछ सपने में भी नहीं सोच पाते, की ये भी हो सकता है। इस दौरान बुरा-भला जो कुछ देखा, सुना या सहा, वो शायद कुछ-कुछ ऐसा ही था। ये किसी भी तरह के वित्तीय नुकसान से कहीं ज्यादा था या कहो की है। वित्तीय भरपाई फिर से संभव होती है। मगर गए हुए लोगों को वापस लाना? और इतने सारे लोगों को ऐसे जाते देखना? उससे भी बड़ा, खासकर मेरे जैसे लोगों के लिए, जो चुप नहीं रह सकते। जैसे, ये तो संभव ही नहीं।
बुरे वक़्त में गए लोग और गया वक़्त तो वापस नहीं आता। मगर शायद, कोई सबक या सीख जरुर दे जाता है।
उस स्कूल का एक नाम भी रखा था या कहो सोचा था, जो रितु से ही शुरु हो रहा था। खैर! जाने किस, किस को उससे दिक्कत महसूस हुई और क्यों? तो अपने ही नाम का पहला और आखिरी अकसर लगा कर, एक अलग ही तरह का Reflection, जिसपे Action भी संभव है, शुरु हो गया। दुनियाँ भर की यूनिवर्सिटी की सैर ने उसे अलग-अलग तरह के पँख दिए। वो किसी भी तितली के भी हो सकते हैं और बड़ी से बड़ी इंसान द्वारा बनाई मशीन के भी। हाँ ! ये तितली या मशीन, शायद उनकी घड़ी किसी भी तितली या मशीन से मेल नहीं खाती।
जब online NSDL Protean पे कुछ updates की जा रही थी तो संदीप गुप्ता कई ऑफिसियल IDs का प्रयोग कर रहा था। और OTP लेने के लिए, Finance Officer को कॉल भी। NSDL, Protean कब और क्यों हो गया? NSDL की दो अलग-अलग वेबसाइट क्यों हैं? CRA और NSDL? इसका ऑफिस मुंबई ही क्यों है? उसके कस्टमर नंबर में क्या खास है? मुंबई और सिविल लाइन्स, दिल्ली का आपस में क्या लेना देना है? दिल्ली CM का ऑफिस हमेशा सिविल लाइन्स दिल्ली ही होता है? या निर्भर करता है की CM कौन है? और कोई CM वहीँ अपना ऑफिसियल घर क्यों लेता है? और ये मनीष सिसोदिया और मनीष ब्लाह, ब्लाह एक ही हैं क्या? क्यूँकि, यूनिवर्सिटी की किसी नौटंकी में भी कोई मनीष था? खैर। इस सबका IGIB, Delhi वाले संदीप शर्मा से क्या लेना-देना है? या किसी गाडी के पिछे ये Dad's gift, Airforce में क्या खास था? ये भारती-उजाला केस से भी कोई-लेना देना है?
खैर। संदीप शर्मा वहाँ से Ram Jas College और वहाँ से Switzerland पहुँचते हैं। Ram Jas? J S और मुंबई? A K और मुंबई? या शायद Na ra और मुंबई?
और ये मोदी जी, 15 लाख हर किसी के खाते में पहुँचाने की बात करते हैं? खैर। संदीप को तो इसका ईनाम मिलता है, PhD स्मृति के रुप में? मगर, इन सबका IIT Delhi और दिल्ली की फिलहाल CM रेखा गुप्ता से क्या लेना-देना? बोले तो कुछ नहीं। आप आगे बढ़ो और जानने की कोशिश करो, की ये NSDL का आज तक Address Update क्यों नहीं हुआ? बोले तो कोई 15 नंबर और कोई पहुँचा 16 नंबर? जहाँ से पानी में जहर आना शुरु हुआ? Slow Poision? यूनिवर्सिटी की वाटर सप्लाई में किचड़? या JNU के जबरदस्ती वाले काले TANK? और किसी ने बोला, ये जहर 15 से आता है? कोई जगत जननी पहुँचा रही है? आज तक ये जगत जननी साँग समझ नहीं आया।
CRA में तो पता वही है, जो आपने लिखवाया है। मगर NSDL Update नहीं कर रहा? ये कब तक 16 में बैठा रहेगा? नाम मेरा और पता? किसी Sajjan Dahiya का? घपला है जी ये तो। ऐसे जैसे, कोई बिहार के छठ वाला बिहारी कहे, मैं ही Shiv, मैं ही Shankar और मैं ही Khatu? पता नहीं, अब इससे बीमारी कौन-कौन सी ईजाद होती हैं? AI DS? H IV? या So? NIA? या Son? IA?
जैसे US के नाम पे या पहुँचते ही Yahoo .com की बजाय co.in हो जाए? और कोई गौरव सैनी Co m pass में अकाउंट खुलवा दे? बजाय की बैंक ऑफ़ अमेरिका के? ऐसे ही जैसे, किसी के भाई की चौधरी से शादी हो और सालों बाद पता चले, ये कादयान हैं? ऐसे ही शायद, किसी की बहन की राठी से? कैसे-कैसे नाथुला पास हैं ये?
Strange world of political gambling.
जिसका कब्ज़ा आपके रिश्ते बनवाने पर, तुड़वाने पर। बच्चों को इस जहाँ में लाने पर, तो कहीं पैदाइश से पहले ही अबो्र्ट करवाने पर। ना हुई बिमारियाँ पैदा करने पर, ना होने वाले ऑपरेशन या एक्सीडेंट करने पर। और? आप कब कहाँ रहेंगे और कहाँ नहीं, ऐसे-ऐसे एनफोर्समेंट पर भी। और जानने वाले कहते हैं, की इस सिस्टम को जानने-समझने के लिए Astrology को समझो। Astrology? इसका, इन सबसे क्या लेना-देना? अब ये कैसा कोड है? Astrology और कहीं का भी सिस्टम, जानने की कोशिश करें इसे आगे? जैसे Social Programming?
क्या NSDL Protean एक गौरख-धंधा है?
Fraud? गौरख धंधा, किसे कहते हैं?
स्वस्थ जिंदगी (Healthy Life)
स्वस्थ ज़िंदगी के लिए आपको बहुत कुछ नहीं चाहिए। मगर बहुत कुछ जो हमारे वातावरण से या आसपास से हमें जाने-अंजाने मिलता है, उससे बचने की जरुरत जरुर होती है। उससे आगे काफी कुछ हमारी अपनी दिनचर्या या खान पान को सही करने की जरुरत होती है। जैसे की कहा गया है की "Precaution or prevention is better than cure", सावधानी या ऐतिहात, ईलाज से बेहतर है।
आप अपने स्वास्थ्य का चाहे कितना ही ऐतिहात बरतने वाले हों, फिर भी कभी न कभी तो जरुर, किसी न किसी बीमारी से सामना करना ही पड़ा होगा? वो फिर कोई छोटी-मोटी ज़ुकाम या सिर दर्द जैसी समस्या हो या कोई आते जाते मौसम-सा बुखार, जिसमें आपको कुछ खास नहीं करना पड़ता, अपने आप ही ठीक हो जाता है। मगर कभी-कभी शायद बहुत कुछ अपने आप ठीक नहीं होता, उसके लिए थोड़ी सी मेहनत चाहिए होती है। कभी-कभी शायद थोड़ी ज्यादा? जैसे किसी एक्सीडेंट के बाद? या किसी थोड़ी बड़ी बीमारी या ऑपरेशन के बाद?
चलो पहले थोड़ा ऐतिहात या सावधानी की बात करें?
Attitute is Everything
मन के माने हार है और मन के माने जीत? आपने मान लिया की आप जीत रहे हैं, तो जीत रहे हैं। आपने मान लिया की आप हार रहे हैं, तो हार रहे हैं? आपने मान लिया की आप बीमार हैं, तो बिमार हैं। आपने मान लिया की ठीक हैं, तो ठीक हैं? संभव है क्या? ज़िंदगी संभानाओं का ही नाम है? आपके मानने या ना मानने से ही बहुत कुछ छू-मंत्र हो जाता है और बहुत कुछ पनप भी जाता है। बिमारियों का या स्वास्थ्य का भी काफी हद तक ऐसे ही है। काफी हद तक, बिलकुल नहीं। इसलिए
Own Your Mind and Own Your Life
Own Your Body
ये Own Your Body पे क्या आ गया?
How ecosystem of any place develops with politics of that place?
किसी भी जगह का इकोसिस्टम राजनीती के घटनाक्रमों या बदलावों के साथ कैसे बदलता है? आप जहाँ कहीं हैं, वहीँ से समझने की कोशिश करें, खासकर अगर उस जगह को थोड़ा बहुत समझते या जानते हैं तो। जैसे मैं अगर अपने गाँव की बात करूँ तो ये M प्रधान Madina दो पंचायतों का गाँव है। Madina A, Kaursan, K प्रधान है। और Madina-B, Gindhran, G प्रधान है। मगर M, K और G सिर्फ पहले अकसर हैं। इनके आगे जटिल कोड है। Madina हाईवे पर है और चारों तरफ अप्प्रोच रोड़ या कहो की गाँवों से घिरा है। ये अप्रोच रोड़ या गाँव उस तरफ की अलग सी कहानी या कोड हैं। जैसे हाईवे पर एक तरफ Kharkara और दूसरी तरफ Bahu Akbarpur.
ऐसे ही जैसे अप्प्रोच रोड़, हाईवे के एक तरफ Bharan, Ajaib, तो दूसरी तरफ Mokhra. और भी अलग अलग दिशा में अलग अलग अप्रोच रोड़ या गाँव। किस गाँव की Proximity किस गाँव के किस हिस्से के करीब है? वो वहाँ का जटिल कोड है। उसी कोड में वहाँ की समस्याएँ या समाधान भी हैं। जैसे, आपके गाँव में हॉस्पिटल कहाँ-कहाँ हैं? प्राइवेट या सरकारी? किस तरफ हैं? किन गाँवों की तरफ या आसपास? आदमियों के या जानवरों के? वहाँ डॉक्टरों के नाम क्या हैं? या बाकी स्टाफ के? वहाँ आसपास दवाईयों की दुकानों के क्या नाम हैं और उन्हें चलाने वालों के? प्राइवेट डॉक्टर, डॉक्टर हैं या झोला छाप? ये जाते ही इंजेक्शन ठोकने वाले कौन हैं? और दवाई देने वाले कौन? या नाम मात्र दवाई दे काम चलाने वाले?
किसी खास बीमारी के डॉक्टर भी बैठते हैं आपके गाँव के किसी हिस्से में? या खास स्पेशलिटी के हॉस्पिटल? उस बीमारी के या स्पेसलिटी के डॉक्टर या हॉस्पिटल जहाँ वो हैं, वहीँ क्यों हैं? क्या खास है, उस जगह में? या कहो की वहाँ के कोड में? ये डॉक्टर या हॉस्पिटल कोई खास सर्टिफिकेट भी रखते हैं या कहाँ से सर्टिफाइड हैं? ये सब कोड है। ऐसे ही दवाईयों का कोड होता है। अलग-अलग जगह और अलग-अलग हॉस्पिटल या डॉक्टर का अलग-अलग कोड। ये कोड उनके किसी भी बीमारी के ईलाज के बारे में भी काफी कुछ बताते हैं।
जैसे मान लो आपने कहीं कोई ईलाज करवाया और उस हॉस्पिटल का सरकारी सर्टिफिकेशन नंबर है 1234abcd और जिस जगह वो है, उस जगह का नंबर जाट प्लॉट या राज प्लॉट या बनिया प्लॉट। उस हॉस्पिटल को घुम कर और कोड पढ़ने की कोशिश करो। पता चलेगा, पानी के गिलास पे ही चेन बंधी है। मतलब, पानी तक पर भारी भरकम टैक्स जैसे? ऐसे ही और भी कितनी ही मजेदार चीज़ें दिख सकती हैं। जैसे किसी मूवी में किन्हीं नर्स ने मरीज के साथ वालों को कॉउंटर से ढेर सारी दवाईयाँ या इंजेक्शन वगरैह लाने को बोला। और फिर उनमें से कुछ एक वो मरीज को देकर, बाकी आपकी जानकारी के बिना वहीँ कॉउंटर पर पहुँचा दें। सोचो, और कहीं कोई मीडिया आपको दिखा रहा हो, ऐसे होते हुए? फिर कहीं कोई खास कंपनी और नंबर वाली एम्बुलैंस, किसी खास डायग्नोस्टिक सेंटर तक पहुँचाए, क्यूँकि, उन टेस्टों की सुविधा उस अस्पताल में नहीं है। फिर वहाँ देखो छत पे चमकते चाँद सितारे, कह रहे हों जैसे, यहाँ सब मंगल-मंगल है? यही नहीं, और भी अनोखे किस्से-कहानी उस हॉस्पिटल की ईमारत में ही पढ़ या समझ सकते हैं। और वहाँ मरीजों का जो इलाज होगा, वो? वो भी किन्हीं खास कोड वाला ही होगा। और जरुरी नहीं, वहाँ के सब डॉक्टरों या स्टाफ को ऐसी कोई जानकारी तक हो। ये सिस्टम का ऑटोमेशन (automation) बताया।
ऐसे ही दवाई बनाने वाली कंपनियों का होता है। और उनकी दवाई, उनसे मिलते जुलते कोड पर ही पहुँचती हैं। ये सब स्वास्थ्य बाजार है। जहाँ स्वास्थ्य मिलता कम है। मगर उससे खिलवाड़ या छेड़छाड़ ज्यादा होती है।
ऐसे ही स्कूलों का है। कोई भी स्कूल किस जगह है? उसका नाम क्या है? उसको चलाने वाले कौन हैं? वो स्कूल किस सँस्थान से सर्टिफाइड है? उस का सर्टिफिकेशन नंबर या तारीख क्या है? उसमें कितने बच्चे और किस क्लास तक पढ़ते हैं? पढ़ाने वाले या स्टाफ कौन है? वो कौन सी कंपनी या लेखकों की किताबें पढ़ाते हैं? वो किताबें कितना सही या गलत पढ़ाती हैं? किताबें गलत भी पढ़ाती हैं? हाँ। क्यूँकि, उन्हें लिखने वाले इंसान हैं और उनके अपने मत हैं और बहुत से केसों में अलग अलग राजनितिक पार्टियों से संबंधित भी। अब जो खुद कम पढ़े लिखे हैं, उन्हें तो ये सब समझ ही नहीं आएगा। उन किताबों की कंपनियों या खुद किताबों के भी कोड हैं और जो सिलेबस बच्चे पढ़ते हैं, उसके भी। ये सब ऊप्पर से चलता है और स्कूलों तक के स्तर पर ऐसे ही इन राजनितिक पार्टियों का और बड़ी-बड़ी कंपनियों का बड़ा ही गुप्त सा कंट्रोल होता है। जो पढ़ाया जा रहा है, वो एक तरह की ट्रेनिंग है, किसी खास पार्टी या मत की।
ऐसे ही जो आप खाते-पीते हैं, वो आपके शरीर की ट्रैनिंग है, जहाँ का खा-पी रहे हैं, वहाँ के स्तर के स्वास्थ्य या बिमारियों की। खाद पदार्थ या पानी, कहीं भी किस कोड के मिलते हैं, वो उस कोड के अनुसार, वहाँ की बिमारियों की अधिकता या कम होना बताते हैं। जैसे कहीं खाने-पीने के प्रदूषण की अधिकता की वजह से बिमारियाँ हैं। तो कहीं ज्यादा खाने-पीने और कम घूमने-फिरने की वजह से। खाने-पीने के प्रदूषण की वजह से ज्यादातर गरीबी का संकेत है। और ऐसी ही जगहों पे होती हैं। तो खाने-पीने की अधिकता या कम घूमना-फिरना, फलते-फूलते लोगों या घरों की? ऐसा ही कहते हैं ना? काफी हद तक सही भी? क्यूँकि, खाने पीने में प्रदूषण वाली जगहों पर मोटापा या इससे जुडी बीमारियाँ कम ही मिलेंगी। ऐसे ही मोटापा या इससे जुड़ी बीमारियाँ, ज्यादातर शहरों की तरफ ज्यादा। ज्यादातर, क्यूँकि, और भी बहुत से कारण होते हैं इसके साथ-साथ।
इन्हीं कोडों के आसपास कहीं भी बाकी सब जीव-जंतु मिलते हैं। क्यूँकि, हर जीव किसी खास इकोसिस्टम में ही पनपता है या फलता-फूलता है। या ख़त्म हो जाता है। या संघर्ष करता नज़र आता है। जितना ज्यादा आपको कोई भी इकोसिस्टम समझ आना शुरु हो जाएगा, उतना ही ज्यादा उसकी खामियों का ईलाज भी। या बहुत जगह ईलाज आपके वश से बाहर के कारणों पर निर्भर करता है। तो ऐसे इकोसिस्टम से निकलना ही बेहतर होता है, बजाय की उससे झुझते रहने के।
जैसे कई बार खास तरह के जीव जंतुओं को पालने वाले या पनपाने वाले कुछ खास घर या इंसान भी हो सकते हैं। जैसे कबूतर या मछली। जैसे चिड़ियों के लिए गर्मी में पानी रखने वाले खास विज्ञापन? या पुरानी चिड़ियों की जगह नई किस्म की चिड़ियों या पक्षियों या जानवरों का दिखना या किसी खास जगह से आना या कहीं जाना। ये अपने आप नहीं होता। किसी भी जगह के राजनितिक कोड के साथ ये भी जुड़ा है। एक ही जगह पर, एक घर से दूसरे घर की छतों पर अलग-अलग किस्म की चिड़ियों या पक्षियों का आना। ये इस पर निर्भर करता है, की उनके खाने के लिए वहाँ क्या खास है, जो साथ वाले घर या पड़ोस में ही नहीं है। या पक्षी कितना बड़ा या छोटा है? और किस तरह के वातावरण को ज्यादा सुरक्षित समझता है? जैसे छोटी चिड़ियाँ कहाँ आती हैं या कहाँ घोसले बनाती है? कौवे या नीलकंठ या मोर या बत्तख या गिद्ध कहाँ? हर जीव के लिए खाना, सुरक्षा और फलने-फूलने की जगहें महत्त्व रखती हैं। ये यहाँ से वहाँ जीवों को लाने या ले जाने वालों को अच्छे से पता होता है। कहीं का भी सिस्टम या इकोसिस्टम, ऐसी जानकारी रखने वाली ताकतें बनाती या बिगाड़ती हैं। और ये ज्यादातर आम जनता की जानकारी के बिना होता है। जितना ज्यादा इस जानकारी का दायरा बढ़ता जाता है, उतना ही ज्यादा वहाँ के जीवों पर कंट्रोल। इंसान उन्हीं जीवों में से एक है।
कुछ-कुछ जैसे election और delimitation?