Views and Counterviews 95

 जाने क्यों ये विडियो बार-बार मेरे यूट्यूब पर आ रहे हैं? कह रहे हों जैसे, सुनो हमें? जाने क्यों लगा, की ये तो रौचक हैं      प्रशांत किशोर  V...

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Friday, February 28, 2025

ABCDs of Views and Counterviews? 44

स्वस्थ जिंदगी (Healthy Life)

काफी वक़्त हो गया हैल्थ, एक्सरसाइज़ या डाइट पे कुछ नहीं लिखा? कोरोना खा गया ये सब? Resignation के बाद जब घर आई, तो बस इतना-सा ही ख्वाब था, एक Writing Hub, एक छोटी-सी किचन, मेरे छोटे-मोटे dietry experiments के लिए और घुमने या एक्सरसाइज़ के लिए हरा-भरा-सा लॉन? और उसपे एक छोटी-सी पोस्ट भी लिखी थी। मगर कहाँ पता था, की इधर खिसकाने वालों के इरादे कितने खतरनाक होंगे? वो तुम्हे एक जेल की सैर के बाद, दूसरी किसी और ही तरह की जेल की सैर पे भेज रहे हैं? वो हॉउस अरेस्ट टाइप, जो उस साढ़े तीन दिन के खास-म-खास जेल ट्रिप के दौरान ड्रामे के रुप में बताई थी? और तुम घर आ रहे थे, बचपन के स्वर्ग से सपने लेकर? 

मगर कोरोना ने सिर्फ ये सब नहीं खाया। उसने कुछ एक ब्लॉग्स, कुछ एक पत्रकार या सरकार के आलोचक भी खाए, जिन्हें आप पसंद करो या ना करो, मगर सिखने और जानने-समझने को काफी कुछ था, उनके सोशल प्रोफाइल्स पर या ब्लॉग्स पर। कुछ का समझ नहीं आया, की इन्होंने अपने ब्लॉग्स या सोशल प्रोफाइल्स पर ताले क्यों लगा लिए? और कुछ को कौन-से heart attack या हैल्थ प्रॉब्लम्स खा गई? वो सब सीधा-सीधा डराने के लिए भी था, की Campus Crime Series या Case Studies बंद। लिखना ही है तो और बहुत कुछ है तुम्हारे पास। नहीं तो अंजाम तुम्हारा भी ऐसा ही कुछ होगा। Campus Crime Series को बीच में ही रोकने की एक वजह, ये चेतावनियाँ भी रही। जब सिर्फ खुद की ज़िंदगी ही नहीं, बल्की, आसपास भी जैसे घुटता-सा या उठता नज़र आया । मगर ऐसा कुछ छोड़ा भी नहीं, जो बाहर आना चाहिए था और जैसे किसी कैद में था। क्या था वो? 

भारती-उजला केस?

Exams Fraud December 2019? और माँ का ऑपरेशन? 

और फिर? March 2020 कोरोना की शुरुआत?  

खैर। मेरे पास सच में उससे आगे भी काफी कुछ था, जो हर रोज आँखों के सामने घट रहा था या है। 

Social Tales of Social Engineering (Making of Human Robots) 

Bio Chem Physio Psycho and Electronic Warfare: Pros and Cons    

मगर ये सब जानना-समझना इतना भी आसान कहाँ था? अगर सच में कुछ बड़ी-बड़ी ताकतें, उन्हें यूँ मुझ तक किसी न किसी रुप में ना पहुँचाती तो? और शायद खुद राजनितिक पार्टियाँ भी? जैसे, एक-दूसरे के कारनामों को बताने या दिखाने की हौड़? जैसे सबकुछ सामने हो, और हम समझ ना पाएँ की सबकुछ कोड है। उन कोडों को समझने की कोशिश करो और परतें अपने आप खुलती जाएँगी? 

आज ये अचानक, फिर से कहाँ से आ गया? जानते हैं अगली पोस्ट में। 

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